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Thursday 31 May 2018

राजस्थान की वसुंधरा सरकार का लेखा-जोखा

डॉ. नीरज मील


2013 के विधानसभा चुनावों में वर्तमान राज्य सरकार की भारतीय जनता पार्टी ने जनता से वायदे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। 2013 में चुनावी घोषणा पत्र में अन्य दलों की भाँति ही भारतीय जनता पार्टी ने घोषनाओं की झड़ी लगा दी थी। आलम ये था कि जो भी गलत दिखा उसको भी स्वीकार कर सही करने की घोषणा कर डाली। इसके अलावा बहुत कुछ वो भी स्वीकार कर लिया जो कभी संभव नहीं हो सकता। अगर चुनावों के इस माहौल में कोई किसी पार्टी को ये भी जाकर कह दे कि हम तो वोट आपकी पार्टी को तभी देंगे जब आप चाँद और तारे तोड़कर ला दो। ऐसे में सभी दलों में हामी भरने की होड़ सी मच जाती है। वर्तमान सतारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने सुराज संकल्प में कुलमिलाकर ने एक नारा दिया “सुराज संकल्प, भाजपा विकल्प”। इसी विकल्प में भारतीय जनता पार्टी ने 64 पृष्ठ के इस घोषणा–पत्र में 27 शीर्षकान्तर्गत 45 पृष्ट का एक एजेंडा जनता के सामने पेश किया। भारतीय जनता पार्टी के सता में आने के लिए जनता से कुल 609 वायदे लिखित में किये थे। वहीँ कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में 29 शीर्षकों के अंतर्गत 523 वायदे ही किए। परिणाम ये रहा कि जनता ने कांग्रेस की जगह भारतीय जनता पार्टी को तरजीह दी और 200 में से 163 सीटों से नवाज़ा।
ऐतिहासिक उम्मीदों के साथ भारतीय जनता पार्टी ने 13 दिसम्बर 2013 को वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सरकार बनाई। लेकिन जनता इस तरह से नाउम्मीद हुई कि अब उम्मीद करने से भी खौफ खाने लगी है। महिला और युवाओं से भी ख़ास वर्ग है किसान और मजदूर। वायदों का हार तो इन्हें भी बहुत सुन्दर पहनाया था लेकिन जो आज सबसे ज्यादा अपेक्षित भी यही है। राजस्थान में कृषक सुरक्षा अधिनियम बनाए जाने का वादा किया था उलटे किसानों को उचित मांगों पर इन साढे चार सालों में कई बार जेल में जरुर भेजा गया। इसके अतिरिक्त भी सरकार द्वारा किसानों से किये गए वायदों को तोड़ने में ये सरकार बीस ही साबित हुई। किसानों को 24 घंटे बिजली देने का वादा भी किया था लेकिन 5 घंटे भी बिजली की निर्बाध उपलब्धता दूभर हो गयी। अब ये स्पष्ट हो चुका है कि सरकारों की नज़र किसान का कोई औचित्य नहीं है।
किसानों के बाद नाउम्मीद प्रदेश के युवा हुए हैं। युवाओं के वोट हासिल करने के लिए भाजपा ने कुल वादों का करीब 20 फीसदी से अधिक वादे तो इसी तबके को लेकर थे। चुनावों के दौरान युवाओं को भारतीय जनता पार्टी ने हाईटेक एजुकेशन का ख्व़ाब दिखाकर 15 लाख रोज़गार के सृजन की बात कही। पंजीकृत बेरोजगारों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर 20 लाख रुपए तक का कर्ज व्यवसाय के लिए देने का वायदा किया। संविदा कार्मिकों को स्थायी करने की बात कही जिसके चलते युवाओं ने वोटिंग में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। ऐतिहासिक मतदान हुआ लेकिन जब आखें खुली तो पता चला कि वोट की खातिर धुल ही झोखी गयी है। और इस तरह एक बार फिर ये सिद्ध हो गया कि घोषणा-पत्र में किए गए चुनावी वादे तो हवा हवा ही हो जाते हैं। रोज़गार, खेलकूद और शिक्षा के नाम पर युवाओं की भावनाओं से ये खिलवाड़ अभी भी बदस्तूर जारी है। आलम ये है कि शिक्षा, रोजगार, व खेलकूद सहित किये एक सौ से अधिक वायदों में से 76 प्रतिशत से अधिक वादें तो भूला ही दिए गए। शेष रहे वायदों में न के बराबर काम हुआ है। उदाहरण के तौर पर जो सुविधा तत्काल दी जा सकती थी वो भी इस पार्टी की सरकार ये मय्यसर न हो सकी। युवा, खेलकूद और रोज़गार शीर्षक अंतर्गत बिंदु संख्या 4 में वादा था कीसी भी प्रतियोगी परीक्षा में सम्मिलित होने हेतु जाने वाले परीक्षार्थियों को राजस्थान रोडवेज में नि:शुल्क आवागमन की सुविधा का लेकिन यह दूर की कौड़ी ही साबित हुई। डिजिटल इंडिया का नारा तो लगाया लेकिन न माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षकों की भर्ती हो सकी और न ही 15 लाख रोज़गार के अवसर, रोजगार परक शैक्षणिक डिग्रिया तो दूर अन्य डिग्रियों के भी टोटे पड़े हुए है। डिग्रियों की दुर्गति इस कद्र है कि पीएचडी किए हुए लोग भी चपरासी के लिए आवेदन को मजबूर हैं।
लोक कल्याण हेतु सभी क्षेत्रों में सरकारी नियंत्रण बेहद जरुरी होता है। इसी के चलते सरकार ने यह भी वादा किया था कि सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण में मोनिटरिंग नियामक बोर्ड का गठन किया जाएगा। इसके अतिरिक्त शिक्षा की गुणवत्ता पर निगरानी के लिए गुणात्मक शिक्षा नियामक आयोग और युवाओं की मदद के लिए युवा आयोग का गठन किया जाएगा। लेकिन सरकार बनाने के बाद ये सरकार इतनी गहरी नींद में चली गयी कि आज साढे चार साल बाद भी ये सभी आयोग घोषण-पत्र से आज़ाद न हो सके। इसके अतिरिक्त युवाओं के लिए नयी युवा नीति, नयी शिक्षा नीति एवं नयी रोज़गार नीति अब भी अंतिम रूप दिए जाने का इंतज़ार कर रही है।
दूसरा तबका आता है महिलाओं का चाहे आबादी के लिहाज़ से हो या वर्ग के लिहाज़ से। इस वर्ग के लिए भी 27 से अधिक वादे किए थे। इन वायदों के मुताबिक़ बाल हृदय योजना, महिला समृद्धि बाज़ार योजना, मिशन बलम सुखम आदि योजनाएं शुरू करने की बात कही गयी थी लेकिन आज सादे चार साल का कार्यकाल पूरा होने के बावजूद भी इन योजनाओं का क्रियान्वयन तो दूर इनके नाम का कही कोई चित्र भी देखने को नहीं मिला है। इसके अतिरिक्त महिला,पर्यटन और शिक्षक प्रशिक्षण विश्वविद्यालय खोलने का भी वायदा किया था लेकिन 4 साल और 5 माह 17 दिन गुजर जाने के बाद भी इन में से किसी भी विश्विद्यालय की नीव तक नहीं रखी गयी है। पहले खुले विश्विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में करीब बहुत सारे पदों पर अभी तक भर्ती भी नहीं की जा सकी है।
तीन बड़े तबकों जिनमें 85 फीसदी से ज्यादा की आबादी आ जाती है जब उनके लिए सरकार कुछ न करें तो शेष के लिए बहुत कुछ कैसे कर सकती है? हाँ यहां या उल्लेखनीय है सरकार ने खुद के लिए बहुत कुछ किया है। मुख्यमंत्री को आजीवन सुविधाओं का अम्बार देने जैसे निर्णयों के अलाव सरकार ने किसी और को तो भीख भी नहीं दी। स्पष्ट है जिस दल ने सत्ता में आने से पहले विद्यार्थी मित्रों, शिक्षामित्रों, संविदा कार्मिकों, और अतिथि शिक्षकों के स्थायीकरण कर सभी समस्याओं के अंत करने का वादा किया था वही अब सत्ता मिलने के बाद मुकर जाए तो इसे विश्वासघात ही कहा जाएगा। शिक्षकों के सेवानिवृति से पहले पदों को भरने, प्रत्येक उपखंड पर एक सरकारी महाविद्यालय खोलने, विश्वस्तरीय हिंदी शब्दकोश बनाने, दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने के साथ ही जाती प्रमाण-पत्र देने, सेना और सुरक्षा बालों के द्वारा 9 से 11 तक के विद्यार्थियों को अनिवार्य प्रशिक्षण दिलाने, आई आई टी एवं इसरो जैसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थानों में राज्य के मेधावी विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने, सभी महाविद्यालयों का नेक एक्रीडिशन कराने, माध्यमिक और उच्च-माध्यमिक शिक्षा को नेशनल वोकेशनल एजुकेशन फ्रेमवर्क से जोड़ने, बैंकों से रियायती एजुकेशन ऋण दिलाने, काउंसलिंग केंद्र खोलने, राजस्थानी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करवाने जैसे कई वायदे किये थे जिनमें से एक वादे की तरफ भी ध्यान नहीं दिया गया।
प्रदेश की राजनीति में आरक्षण को लेकर महत्वपूर्ण वोट बैंक बने गुर्जर, रेबारी, राइका को 9वीं अनुसूची के तहत 5 प्रतिशत आरक्षण देने और मुस्लिम मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने के लिए मदरसों को वोकेशनल शिक्षा से जोड़ने के साथ ही सरकार में अलग से गौ-पालन मंत्रालय एवं मध्यम वर्ग के लिए आयोग गठित करने का किया गया वायदा भी जुमला ही साबित हुआ। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान में वसुंधरा सरकार के स्थिति-विवरण में जहां बकाया दायित्वों की बाढ़ आ रही है वहीँ व्यक्तिगत सम्पति के अलावा और कुछ नज़र नहीं आ रहा है। केवल जुमलों का बैलेंस आधिक्य है। ऐसे में मर्यादित प्रतिवेदन में केवल इतना ही कहा जा सकता है इस सरकार की स्थिति भयावह है। कोई भी लेखाकार इन खातों को संधारित करने से कतरायेगा ही। ऐसे में सरकार निश्चित ही अपने अंतिम समय पूर्वर्ती सरकार कांग्रेस सरकार की भांति ही जोर-जोर से भागने की कोशिश जरुर करेगी। ऐसे में सरकार से किसी भी प्रकार के उचित क्रियान्वयन की उम्मीद करना बेकार है। कुलमिलाकर सरकार अपने वादे भुलाकर जनता को मूर्ख बनाने में कामयाब रही। देश की राजनैतिक विचार के लिहाज़ से राजस्थान में भाजपा सरकार को नैतिकता को तकाजे पर रखकर 5 में से आधा स्टार दिया जा सकता है। देशहित एवं जनहित में लेखाजोखा जारी रहेगा .....इंक़लाब जिंदाबाद।

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