पेट्रोल में लगी आग देश में बुझी न थी कि तमिलनाडु
में लोग हवा और पानी के लिए आग लग गयी। तमिलनाडु के तूतीकोरिन
में एक स्टरलेट कॉपर कारखाने को बंद करने को लेकर विरोध प्रदर्शन के हिंसक हो जाने
के बाद मामले में आग लग गयी। किसी कंपनी के खिलाफ ऐसा
पहला बड़ा मामला है जहां मुद्दा कंपनी को जमीं खरीदने की वजह से नहीं बल्कि अपने
कृत्य की वजह से विरोध झेलना पड़ रहा है और सरकार भी बैक फुट पर आ गयी है। दक्षिण तमिलनाडु के तूतीकोरिन में 18
गांव के हजारों लोग 100 दिनों से प्रदर्शन कर
रहे थे। प्रदर्शन एक स्टरलेट कॉपर कारखाने को बंद किये जाने की मांग को लेकर किया
जा रहा था, जिससे आसपास के गांवों
के लोगों को कैंसर की बीमारी हो रही है। मंगलवार को प्रदर्शन के 100वें दिन उस वक्त हालात
बेकाबू हो गये जब इन लोगों ने कलेक्टर कार्यालय की घेराबंदी कर कॉपर यूनिट को बंद
किये जाने की मांग की। इस दौरान पुलिस के साथ झड़प हुई। इसमें ग्यारह लोगों की जान
चली गई है जबकि सैकड़ों लोग घायल
हुए हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने मृतकों के परिजनों को 10-10 लाख रुपए की
आर्थिक सहायता और परिवार के एक शख्स को सरकारी नौकरी का ऐलान किया है। घायलों को
तीन-तीन लाख रुपए दिए जाएंगे। सरकार ने मामले की जांच के लिए इंक्वायरी कमीशन के
गठन की भी घोषणा की है। क्या होगा इन सब से?
क्या वो 11 लोग जिंदा हो जायेंगे? क्या आगे से कोई आन्दोलन नहीं होंगे?
लोगों का हवा और पानी के प्रदूषण के सवाल पर सडक पर
उतरना और 100 दिनों तक के शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना कोई छोटी बात नहीं है। इन मसलों में ये देखा
जाना बेहद जरुरी होता है कि आमजन के स्वास्थ्य के साथ किस तरह से खिलवाड़ किया जा
रहा है। कॉर्पोरेट क्षेत्र द्वारा प्रकृति के साथ बलात्कार की ये साजिश क्या गुल खिला
सकती है। ऐसे मामलों में सरकारें और प्रशासन क्यों जनता के सवालों को अनसुना कर देते
हैं? जबकि क्या सरकार और प्रशासन दोनों ही परिणाम से वाकिफ होते हैं। कल की तमिलनाडु की
घटना ये बताती है कि पानी और हवा की निहायती आवश्यकता और इसके साथ की जा रही
छेडछाड को एक हद से ज्यादा अनदेखा करना कितना खतरनाक और भयावह हो जाता है। तमिलनाडु के तूतीकोरिन में एक स्टरलेट कॉपर कारखाने को बंद करने को लेकर चल रहा विरोध प्रदर्शन कोई अचानक आई आपदा-विपदा नहीं
थी। ये प्रदर्शन पिछले 3 महीने से भी ज्यादा से चला आ रहा है। ऐसे में सरकार और
प्रशासन की उदासीनता साफ़ झलक रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस फैक्ट्री के प्रदूषण
के कारण सेहत से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं। लोग पहले से ही इस
फैक्ट्री का विरोध कर रहे थे और हाल ही में कंपनी ने शहर में अपनी और यूनिट लगाने
की घोषणा कर दी। विरोध प्रदर्शन के हिंसक होने के बाद गुस्साए लोगों ने यहां 50 से ज्यादा वाहनों को आगे के हवाले कर दिया। तूतीकोरिन में भारी तनाव है
और पुलिस शांति व्यवस्था कायम करने में नाकाम साबित हो रही है।
20 हज़ार से ज्यादा लोग जब प्रदर्शन कर रहे होते हैं
तो इनको अपराधी कहना सरासर नाइंसाफी ही होगी। साफ़ है सरकार ने शांति पूर्ण प्रदर्शन को नजरअंदाज
किया है जिसकी वजह से भीड़ उग्र हो गयी। टी ई नरसिम्हन की रिपोर्ट के अनुसार 23 मार्च 2018
को तूतीकोरिन के लोग जब उठे तो उनका गला जल रहा था आँखे झला रही थी, साँसे लेने
में तकलीफ हो रही थी। तमिलनाडु प्रदूषण बोर्ड ने भी इसे स्वीकार किया और प्लांट बंद करने के लिए कह
दिया। कंपनी ने इसे मामूली करार दिया इसी बात को लेकर प्रदर्शन शुरू हो गया। इसके बाद हुई आगजनी और
करीब 11 लोगों की मौत के बाद भी नेताओं व मंत्रियों की केवल शांति बनाए रखने की
अपील कर रहे हैं। जबकि लोगो का गुस्सा कंपनी को
लेकर है जिसके बारे में न मंत्री जी कुछ कह रहे है और न ही अधिकारी। लोगों के सवाल है वो
अभी भी अशांत ही है। ऐसे में इनकी चुप्पी और शांति बनाए रखने की अपील व अब तक के बयान कॉर्पोरेट-नेताओं के नाजायज सम्बन्ध को
नंगा कर रहे है। विडंबना तो देखिये कि 100 दिन के प्रदर्शन के बावजूद भी प्रशासन और मिडिया
किसी को ये नजर नहीं आया कि मामला क्या है?
स्टरलेट कॉपर कारखाने वाली कम्पनी कोई छोटी कंपनी नहीं है बल्कि देश में
ताम्बे के उत्पादन में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है। ऐसे में सामन्य सी बात
है कि यह हिस्सेदारी बहुत बड़ी है जो सरकार के बूते से बाहर है लेकिन आवश्यक है। वर्तमान परिपेक्ष में इरफ़ान खान अभिनीत मदारी फिल्म
का यह डायलोग बड़ा सटीक बैठ रहा है कि “हिन्दुस्तान में सरकार में भ्रष्टाचार है ये
बात पूर्णत: गलत है, हकीकत तो ये है कि भ्रष्टाचार के लिए ही सरकार है।” वास्तव में पानी सर
के उपर से गुजर रहा है और तैरना कोई चाहता नहीं। ऐसे में डूबना तय है
लेकिन मजेदार बात यह जानना भी है कि संघर्ष कितना होगा? तूतीकोरन में पुलिस द्वारा
11 लोगो की हत्या को जायज ठहराते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने
कहा कि “पुलिस को हिंसा रोकने के लिए व जानमाल की रक्षा के लिए अपिहार्य परिस्थिति
में गोली चलानी पड़ी। प्रदर्शनकारी बार-बार हिंसा कर रहे थे और पुलिस को हिंसा रोकनी थी।” मुख्यमंत्री जी क्या
पुलिस द्वारा लोगों की ह्त्या करवाकर आपने केवल जनता के साथ दगाबाजी की है। अगर पुलिस द्वारा
लोगों को मारना उचित और राज्यहित में ही था तो फिर इन मृतकों को के परिजनों को 10-10 लाख रुपए की आर्थिक सहायता और परिवार के एक शख्स को सरकारी नौकरी का ऐलान क्यों किया? आप खुद तय करें कि आप क्या चाहते हैं?
एक व्यक्ति की जान की कीमत 10 लाख लगाने वाली सरकार पर क्यों नहीं केस चलाया जाए?
आप खुद ही खुद का मूल्यांकन करें कि इस तरह नागरिकों की हत्या कितनी उचित है?
कोंग्रेस अध्यक्ष ने इस पुलिस कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों की मौत को राज्य
द्वारा प्रयोजित आतंकवाद की बर्बरतापूर्ण कार्य करार दिया है।
वास्तव में तमिलनाडु के लिए 22 मई का दिन एक काला दिन
साबित हो चुका है। प्रश्न उठाने और उठने लाज़मी है। क्या सरकार के खिलाफ जनता का प्रदर्शन करना अनैतिक
है? क्या आन्दोलन और प्रदर्शन करना जनता का अधिकार नहीं है? यदि ये विपक्ष की चाल
थी या देन थी तो उस नेता को खोजकर पहले ही चिन्हित क्यों नहीं किया गया? क्यों
नहीं समय रहते जनता की मांग पर इमानदारी से कार्रवाई की गयी? अगर इस प्लांट से कोई
दुष्प्रभाव वास्तव में नहीं थे तो उन नेताओं को गोली क्यों नहीं मारी गयी जो इस
झूठे आन्दोलन के सूत्रधार थे? और सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि इतना बड़ा कारखाना
आबादी वाले क्षेत्र में स्थापित करने की अनुमति ही क्यों दी गयी? लेकिन इन
प्रश्नों के उत्तर कोई नहीं देगा ये सरकार भी जानती है। ऐसे में सवाल यही है
कि फिर जनता पर गोलियां क्यों चलाई गयी। वैसे भी भारतीय पुलिस एक्ट में सीधे जनता पर गोली
चलाने की बात कही भी स्पष्ट नहीं है।
स्थिति जो भी हो कठिन ही होती है। इसिलिए जनता सरकार चुनती है ताकि वह सरकार जनहित में
उचित फैसले ले। लेकिन अफ़सोस इसी बात का है कि सरकारें ही सबसे ज्यादा
लापरवाही और घोर उदासीनता बरतती हैं। खैर, दक्षिण तमिलनाडु की
तूतीकोरिन घटना से देश के बाकी राज्यों विशेषकर उन राज्यों को जहां विधानसभा चुनाव
नजदीक हैं, सबक लेने की जरूरत है। कालान्तर में संविदा कार्मिकों की महापंचायतें और
हड़तालें कब ऐसा ही रूप ले ले इसको लेकर सरकारों को सोचना होगा। ऐसे मुद्दों को एक हल्की सी चिंगारी ही काफी होती है
सरकार के खिलाफ़ भड़काने के लिए। ऐसे में सरकारों को चाहिए कि वे ऐसे निर्णय न ले जो
जनविरोधी हो। देश का कोई भी नागरिक आन्दोलनों में पुलिस की गोली से
मारा जाता है तो वह पूरे मानव समाज के लिए दु:खद है। ऐसे में देश की राज्य सरकारों को अपने गिरबान में
झांक कर उचित निर्णय समय रहते करें ताकि कोई अनचाही और दुर्घटना होने से राज्य की
जनता को बचा सके। सरकार द्वारा पुलिस के हाथों नागरिकों की ह्त्या
शर्मनाक और कलंकित करने वाली है। इसलिए तमिलनाडु के तूतीकोरिनकी घटना को किसी भी हाल में
उचित नहीं माना जा सकता... इंक़लाब जिंदाबाद!
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