Watch

Thursday 24 May 2018

रूपये का गिरना : क्या चिंता का विषय नहीं है?

-डॉ. नीरज मील नि:शब्द’



डॉलर के सामने जैसे ही रुपया गिरता है मन में स्वत: ही एक कमजोरी का अहसास भी होता है। इस तरह कमजोर होते रूपये से न केवल भारत का नागरिक आहत होता है बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी अस्थिर होने लगती है। माह मई और अप्रेल में रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर ही होता जा रहा है। इससे पहले करीब 2 साल तक रुपया डॉलर के मुकाबले लगभग स्थिर ही रहा। हाल ही में रुपया डॉलर के मुकाबले 68 पहुँच गया। रूपये का कमजोर या मजबूत होने की स्थिति बाज़ार द्वारा ही तय होती है। जिस तरह से रूपया डॉलर के मुकाबले में कमजोर हो रह है उस प्रवृति के हिसाब से ये अभी थोड़ा और सफर इस दिशा में तय करना चाहेगा। इस फिसलन के चलते रुपया डॉलर के मुकाबले 70 या इसके पार भी जा सकता है। रूपये का यह गणित अर्थशास्त्र के मांग और पूर्ति के  सिद्धांत द्वारा ही तय होता है। प्रथम, बाज़ार में डॉलर की आपूर्ति ज्यादा है और मांग कम तो रुपया मजबूत हो जाता है। दूसरा, बाज़ार में डॉलर की आपूर्ति कम है और मांग ज्यादा तो रुपया कमजोर हो जाता है।
अर्थशास्त्र के इस गणित में रूपये के कमजोर और मजबूत होने के कुछ फायदे और कुछ नुकसान दोनों हैं। रुपये की कमजोरी से कई वस्तुओं महंगी होती हैं तो कई सस्ती भी होती है। रुपये में आई कमजोरी की वजह से हर उस वस्तु और सेवा के लिए ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ेगी जो विदेशों से आयात होती है। हमारे देश में सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात होता है जिससे पेट्रोल और डीजल और अन्य उत्पाद तैयार होते हैं। इस लिहाज से महगाई बढती है और इसका प्रत्यक्ष असर आम आदमी की रोजमर्रा की ज़िन्दगी प्रभावित होती है। पेट्रोल के बाद दूसरे नंबर पर इलेक्ट्रोनिक्स का सामान आयात होता है। फिर सोना और महंगे आभूषणऔर पांचवें नंबर पर इलेक्ट्रिक मशीनों का ज्यादा आयात होता है। इन तमाम वस्तुओं को खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान करना पड़ता है और अब डॉलर खरीदने के लिए क्योंकि पहले से ज्यादा रुपये लगेंगे तो ऐसे में इस तरह की सभी वस्तुओं को विदेशों से खरीदने के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। कई और वस्तुएं जिनका आयात होता है वह सब कुछ महंगी हो जाएंगी क्योंकि इनके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। इन सबके अलावा विदेश घूमनाविदेश में पढ़ाई करने जैसी सेवाएं भी महंगी होंगी। यानी रूपये की कमजोरी से भारत की अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है। इसके अलावा रुपये की कमजोरी के फायदे भी हैं अर्थव्यवस्था की दृष्टि से देखें तो रुपये की कमजोरी से केवल नुकसान नहीं कुछ फायदें भी हैं अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार लंबे समय से निर्यात को बढ़ावा दे रही है भारत से विदेशों को सामान निर्यात करने पर उसकी कीमत डॉलर में मिलती है ऐसे में अगर अब क्योंकि रुपया कमजोर है तो ऐसे में विदेशों से आने वाले डॉलर के देश में ज्यादा रुपए मिलेंगे यानि निर्यात से फायदा बढ़ेगा और निर्यात आधारित इंडस्ट्री और निर्यात के लिए प्रोत्साहित होंगी
बहराल डॉलर की मांग बढ़ने का इस समय सबसे प्रमुख कारण तेल के बढ़ते मूल्य दिखता है। 1 जनवरी 2018 को डॉलर की दर 68रूपये 40 पैसे थी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 61.44 डॉलर प्रति बैरल था जो वर्तमान में बढ़कर 79 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। स्पष्ट है दोनों के मूल्यों में परिवर्तन समानान्तर चल रहे हैं। विभिन्न देशों तेल की मांग एक अनिवार्य मांग है। इसीलिए तेल आयातक देशों की तेल के भुगतान हेतु डॉलर की आवश्यकता होती है। इसलिए डॉलर की मांग ज्यादा हैडॉलर का दाम बढ़ रहा है। तेल आयातक देशों में भारत भी एक प्रमुख देश है। कच्चे तेल की कीमतों में तेजी तथा बढ़ते व्यापार घाटे को लेकर वृहद आर्थिक मोर्चे पर चिंताओं के बीच ही रुपया टूटता है। रुपये को थामने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप भी रुपये की गिरावट को थामने में नाकामयाब रहे ऐसे में रूपए की  गिरती साख और दर को बचाने के लिए भारत को चाहिए कि वो निर्यात पर ज्यादा ध्यान दे। निर्यात संवर्धन विधियों का इस्तेमाल करने का उचित समय अब है। इस तरह अर्जित डॉलर से डॉलर की आपूर्ति बढ़ जाएगी और मांग एवं आपूर्ति का साम्य(संतुलन) पूर्व की भांति बना रहेगा। हमारे उद्यमियों को भी चाहिए कि वे ऑटो गलीचों अथवा पार्ट्स जैसी वस्तुओं का निर्यात करके डॉलर अर्जित करें और इस डॉलर को भारतीय मुद्रा बाजार में ही बेचे। यहां भारत सरकार को भी भारतीय बाज़ार में डॉलर की खरीद करनी चाहिए। परिणामस्वरूप अधिक मात्र में डॉलर अर्जित कर सकते हैं और बढ़े हुए तेल के दाम को अदा कर सकते हैं।
सरकार ने पिछले चार वषों में हाईवे और बिजली की आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे में काफी सुधार किया। इन सुधारों के चलते हमारे उद्योगों की उत्पादन लागत कम हुई और उनके लिए व्यापार करना सरल हुआ है। इसलिए विश्व बाजार में हमारी प्रतिस्पर्धा शक्ति बढ़ी है। फिर भी विडम्बना ही है कि इस समय हमारे निर्यात भी दबाव में हैं। यानी एक तरफ तेल के लिए डॉलर की मांग ज्यादा और दूसरी तरफ निर्यात दबाव में आने से डॉलर की आपूर्ति कम हो रही है। यह आश्चर्यजनक है कि इस समय निर्यात दबाव में है जबकि इस अनुकूल स्थिति में तो हमें अधिक मात्र में डॉलर अर्जित करने थेलेकिन यहां दबाव में दिखता निर्यात हैरान करने वाला है। अगर ऐसी स्थिति में सतही विश्लेषण करें तो सबसे बड़ा कारण है देश में शिक्षा का आभाव और कुशल मानव संसाधन की अनुपलब्धता। हमारी शिक्षा व्यवस्था मुख्यत: सरकारी व निजी विश्वविद्यालयों द्वारा संचालित हो रही है। जहां सरकारी विश्विद्यालयों में सरकारी नौकरियों के लिए सर्टिफिकेट व डिग्री  छापकर देने मात्र का है। वहीँ निजी विश्विद्यालयों में विद्यार्थियों से मोटी फीस वसूल कर इच्छित सर्टिफिकेट व डिग्री का कोरा कागज़ दिया जा रहा है। अर्थव्यवस्था में सक्षम एवं कुशल मानव संसाधन का नितांत अभाव है।
डॉलर की आपूर्ति का दूसरा स्रोत विदेशी निवेश है। दुनिया में एक समय था जब निवेशक गरीब और विकासशील देशों में उपलब्ध प्रचुर मानव संसाधन और कम प्रतिस्पर्धा के चलते ज्यादा वरीयता देते थे। लेकिन भारत जैसे देश जहां नैतिक पतन चरम पर है इस मानव संसाधन की कुशलता में अप्रत्याशित गिरावट दर्ज़ की गयी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत और चीन में जहां किसी विशेष उद्योग में पारिश्रमिक सामान है लेकिन कार्य तुलनात्मक रूप से भारत में आधा ही है। दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने में कामयाबी हासिल कर अमेरिका में निवेशकों के लिए एक आकर्षक आर्थिक वातावरण बनाया है। इसी आकर्षण की वजह से दुनियाभर के निवेशक अमेरिका में निवेश को सुरक्षित मानते हैंइसलिए पूंजी का बहाव एक बार फिर विकाशसील देशों से वापस अमेरिका की तरफ हो गया है। आंकड़ों की जहां तक बात की जाए तो प्रमाण यह है कि 2017 में जनवरी से अप्रैल के बीच चार माह में भारत को 14 अरब डॉलर का विदेशी निवेश शेयरों और बांड बाजार में मिला था। वर्ष 2018 की इसी अवधि में यह घटकर मात्र 0.3 अरब डॉलर रह गया है। साफ है कि विदेशी निवेश से पहले हमें जो रकम मिल रही थी वह अब मिलनी बंद हो गई है। इस तरह से यहां भी परिस्थिति विपरीत हो गई है। इस प्रकार डॉलर की आपूर्ति के दोनों स्रोत निर्यात और विदेशी निवेश-संकट में पड़ गए हैं।
ऐसी स्थिति में सब कुछ  हमारी सरकार के अधिकार के बाहर की बातें हैंसिवाय अपनी अर्थव्यवस्था में उत्पादन की लागत को कम करना करने के। ऐसे में सरकार को चाहिए कि शिक्षाउत्तम व्यावसायिक व आर्थिक वातावरण और श्रम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए। अगर समय रहते तुरंत प्रभाव ये ये ढांचा तैयार नहीं किया गया तो रुपये की गिरावट और ज्यादा बढ़ती जाएगी। बुनियादी कमजोरी की वजह से गिरावट है तो सरकार को व्यापार घाटे की समस्याओं को दूर करने पर ध्यान देना चाहिए। यदि रूपये में गिरावट अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में बनी स्थिति की वजह से आ रही है तो वित्तीय क्षेत्र में सुधार के उपायों से समस्या हल नहीं हो सकती है। सरकार को ही व्यापार घाटे की समस्याओं को दूर करने पर ध्यान देना होगा।.....इंक़लाब जिंदाबाद!

*Contents are subject to copyright                           
                                                                                            Any Error? Report Us

1 comment:

  1. Right explanation of India's international system to take export and import and India's Education system.

    ReplyDelete