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Thursday 17 May 2018

कैसे मजबूत हो आधार कार्ड का आधार?


कब साकार होगी एक नागरिक एक कार्डकी अवधारणा ?
-डॉ. नीरज मील 

हाल ही में एक बहुचर्चित एवं तथाकथित महत्वकांक्षी आधार कार्ड को लेकर देश में न्याय की लड़ाई चल रही है। आम जनता को भी आधार कार्ड को लेकर कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि हो क्या रहा है?” आधार कार्ड से पहले भी भारत में राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस कार्ड, मतदाता पहचान कार्ड, बैंक खाता कार्ड, नौकरी कार्ड, बेरोजगार कार्ड, पेंशन कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड, आयकर का पैन कार्ड, BPL कार्ड, APL कार्ड, जाति कार्ड आदि आदि न जाने कितने ही कार्ड एक आम नागरिक के लिए वैकल्पिक होते हुए भी अनिवार्य हैं। हम सब चाहते हैं कि भारत में प्रत्येक नागरिक के लिए एक ऐसा कार्ड अनिवार्य हो जो एक नागरिक की समस्त सूचनाएं मुहैया करवा सके। एक नागरिक की पहचान दिला सके एवं वर्तमान में प्रचलित नाना प्रकार के कार्डों से मुक्ति दिला सके। यह कानूनी लड़ाई आधार कार्ड को लेकर क्यों शुरू हुई? इसका परिणाम क्या होगा? यह तो वक्त बताएगा लेकिन ऐसे ही कई सवाल एक आम नागरिकों के जेहन में कौंध रहे हैं। इनका सी वजह है सरकार द्वारा आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं करना। इसी वजह से यह कानूनी दांव पेच में फंस गया।

 सरकार दागी मंत्रियों के लिए विधेयक पारित कर देती, ध्वनिमत से ही सांसदों के वेतन एवं अनुलाभ के बिल पास हो जाते हैं तो फिर एक जनहित के मामले में ऐसा क्यों नहीं हो पाता? क्या यह जनता से जनहित का वादा कर संसद में बैठने वालों की दोहरी नीति का प्रतिबिंब नहीं है? क्या यह देश की जनता को गुमराह करने का कार्य नहीं है? क्या यह जनता से उसके तथाकथित नेताओं का छल नहीं है? क्या यह तमाम सवाल भारत सरकार की मंशा पर ही बड़ा प्रश्न खड़ा नहीं करते बल्कि भारतीय सांसदों की घटिया एवं कुंठित स्थिति को भी बयां करते हैं। आधार कार्ड को लेकर शुरू हुई कानूनी लड़ाई इस देश के जरूरतमंदों को तकनीकी कानूनी पेंच में फंसा कर उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने के सिवाय कुछ भी नहीं है। आजादी के बाद एक लंबे अरसे से यह एक पुरजोर मांग रही है कि देश के नागरिकों(जिसमें शरणार्थी नागरिक नहीं है) के लिए एक ऐसा कार्ड बने जो उसकी पहचान के साथ-साथ उसकी नागरिकता भी प्रमाणित करे और इसके साथ ही नागरिक की तमाम प्रकार की जानकारियां मुहैया करवाते हुए वर्तमान के तमाम प्रकार के कार्डों से निजात दिला सके। एक नागरिक एक कार्ड का विचार वैसे तो बहुत पुराना है। यह विचार आज़ादी के बाद देश में कमोबेश ऊंची-नीची आवाज में उभरता रहा है लेकिन इस विचार को संसद में लाने का श्रेय श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को है। आडवाणी जी ने अपने गृह मंत्री पद पर रहते हुए यह विचार संसद के पटल पर रखा था। यह विचार है जो देश के नागरिकों की एक आम राय या फिर आम जरूरत है भी कहा जा सकता है। स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति में इसे राजनीतिक विवाद बनाने का कोई आधार शेष नहीं रह जाता है। इसी विचार को कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने आगे बढ़ाया और आधार कार्ड की शुरुआत की।
अब प्रश्न यह है कि आधार कार्ड आम भारतीय की पहचान के साथ-साथ एक नागरिक एक कार्डका स्वरुप कैसे लें? यह कार्ड आम भारतीय की एक नागरिक एक कारण की भावना के अनुरूप कैसे हो? इस कार्य हेतु सरकार को चाहिए कि वह सबसे पहले आधार के लिए संवैधानिक व्यवस्था करे। आधार कार्ड बनाने वाली नियामक प्रणाली कायम करें ताकि देश की सबसे बड़ी एवं महत्वकांक्षी आधार कार्ड योजना को लागू किया जा सके। संसद द्वारा आधार कार्ड को कानूनी तौर पर न केवल अनिवार्य घोषित किया जाना चाहिए बल्कि इसे नागरिक पहचान के साथ नागरिक कार्ड का दर्जा दिया जाना चाहिए। इस कार्ड को जन्म के 30 दिवस के भीतर बनाने का प्रावधान अनिवार्य हो। इस कार्ड में वर्तमान में दी जा रही जानकारियों के अलावा शैक्षणिक योग्यता, व्यक्तिगत कुशलता, एवं योग्यता भी दर्ज की जाए एवं व्यवस्था हो कि इन जानकारियों का भविष्य में नवीनीकरण किया जा सके ताकि इस की नवीनता कायम रह सके और इसकी उपयोगिता व उपादेयता बनी रहे। वास्तव में देखा जाए तो यह ऐसी व्यवस्था सिद्ध हो सकती है जिस के उपरांत एक नागरिक को बहुत सारे प्रपत्रों का पुलिंदा ढ़ोने किए आवश्कता ही न हो। सैंकड़ों कार्डों से निजात मिल सके। माननीय सर्वोच्च न्यायालय से भी देश के नागरिक इस हेतु संज्ञान लेने की अपेक्षा पाले हुए हैं।
जहां कहीं भी सूचनाओं की बात आए तो एक नागरिक द्वारा एक नंबर या एक कार्ड मशीन में स्वाइप करवाया जाए जिसमें उससे संबंधित सारी सूचनाएं शामिल हो तुरंत उपलब्ध हो जाए। यह समस्त सुविधाएं एवं सूचनाएं अगर इस कार्ड में होती है तो आम आदमी को सरकारी योजनाओं व सुविधाओं का लाभ किसी भी रसूल खोर के आगे माथा रगड़े बिना ही मिल सकता है। जैसा हाल ही भारत में सब्सिडी और डीरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जो वर्तमान में मिले हैं वह इसी का परिणाम है। लेकिन सरकार शायद ही यह चाहे कि वह खुद ऐसा मसौदा तैयार करें। इसीलिए आधार कार्ड के प्रति अभी भी उदासीन रवैया ही सरकार द्वारा अपनाया जा रहा है। आधार को लेकर सरकार जलेबी की तरह उलझी हुई नज़र आ रही है। कोर्ट में दी जा रही दलीलें नाकाफी हैं। भारत में आधार कार्ड के नाम पर दी जा रही सुविधा कुछ लोगों को चुभ भी रही है। इतनी महत्वपूर्ण उपयोगिता होते हुए भी सरकार की उदासीनता भी यही कहती है कि सरकार ही नहीं चाहती कि देश के आम नागरिक को उसका अधिकार मिले। अध्ययन से ज्ञात होता है कि आजादी के बाद देश में बनी प्रत्येक सरकार ने हमेशा नागरिकों के पहचान के संबंध में कमोबेश दोहरी नीति का ही अनुसरण किया है। इसी परंपरा को कायम रखते हुए कांग्रेस की निवर्तमान मनमोहन सिंह सरकार ने भी एक नागरिक एक कार्ड की अवधारणा के क्रियान्वयन से के प्रत्येक स्तर पर हमेशा ही दोहरी नीति का अनुसरण किया। वर्तमान सरकार द्वारा भी कमोबेश यही नीति अपनाये जा रही है। इसी के चलते आधार कार्ड जैसी महत्वकांक्षी योजनाओं पर भी दोहरी नीति अपनाई है। इसीलिए आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं किया गया और अनिवार्य किए बगैर इसको हर जगह लागू करने की बात हो गई। वर्तमान में यदि आधार कार्ड योजना को उसके वास्तविक एवं जायज स्वरूप अर्थात एक नागरिक एक कार्डमें लागू की जाती है, तो यह देश एवं आम नागरिक के विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। इससे देश में सरकारी मदद या सब्सिडी के हो रहे दुरुपयोग को पूर्णता रोका जा सकता है। महत्वकांक्षी आधार कार्ड योजना के प्रभावी क्रियान्वयन से ही देश में मिट्टी के तेल से लेकर अनाज तक पर मिलने वाली समस्त सरकारी तथा गैर सरकारी मदद के लिए उसके वास्तविक हकदार को ही मिली है। देश में ठगी और धोखाधड़ी के कारोबार पर भी अंकुश लगाया जा सकेगा। असामाजिक गतिविधियों पर भी नकेल कसी जा सकेगी। अपराध पर भी बड़ी मात्रा में काबू पाया जा सकेगा। पुलिस को भी अपराधियों को दबोचने में आसानी हो सकेगी। सबसे बड़ी उपलब्धि भारत में शरणार्थियों के रूप में विदेशियों की पहचान करना भी आसान रहेगा। ऐसे में एक नागरिक एक कार्डका विरोध करने वालों को देश द्वारा नकार दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे उनकी देश के प्रति घटिया एवं देश के नागरिकों के लिए घातक मानसिकता जगजाहिर हो रही है। स्पष्ट है कि इस योजना से सरकारी तंत्र में व्याप्त अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार भी दूर होगा। संपूर्ण रूप से स्वस्थ समाज एवं विकसित देश की अवधारणा को बल मिलेगा। मैं एक बार पुनः कहना चाहूंगा कि ऐसा तभी संभव होगा जब आधार कार्ड को आम आदमी की पहचान के दर्जे पर लक्षित करके ने बनाया जाए। आधार को एक नागरिक एक कार्ड का स्वरूप देते हुए लक्षित करके बनाया जाए। समय आ गया है जब देश में एक नागरिक एक कार्डकी योजना को शुरू किया जाए। आज यह भावना एक व्यक्तिगत विचार के रूप में नहीं देखी जा सकती। इसे आम भावना के रूप में ही देखा जाना चाहिए क्योंकि यह न केवल आम भावना है बल्कि आम जरूरत भी है। ऐसी स्थिति में किसी को भी इस से गुरेज कदापि नहीं होना चाहिए। जो आम भावना होती है वह देश की अखंडता एवं एकता से जुड़ी होती है अतः समय आ गया है कि हिंदुस्तान में एक नागरिक एक पहचानया एक नागरिक एक कार्डहो तभी आधार कार्ड एक नागरिक की विशिष्ट पहचान बन सकेगा।

*Image Source: Google search No Copyrights
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