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Thursday 17 May 2018

पत्थरबाजों की पत्थरबाजी कितनी जायज?

                 -डॉ. नीरज मील ‘नि:शब्द’


जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजों की पत्थरबाजी किसी व्यक्ति द्वारा अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है। यह जगज़ाहिर है कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी हुर्रियत नेता पाक समर्थित हैं और इनका व्यक्तिगत वजूद शून्य हैं। इन अलगाववादियों का दूसरा पहलू भी दगाबाज ही है। ये  नेता खुद आलीशान मकानों में बड़े ही ठाठ से जीवन बिताते हैं और उनके बच्चे भी देश-विदेश के दूसरे हिस्सों में सुरक्षित रह रहे होते हैं। और वही पर अपने शादी विवाह शिक्षा-दीक्षा और इलाज़ करवाते हैं। दूसरी ओर घाटी में अशांति और व्यवस्था बिगाड़ने के लिए ये नेता डेढ़ सौ रूपये की दिहाड़ी में  स्थानीय जरूरतमंद बच्चों को  पत्थरबाज बनने को मजबूर करते हैं।भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी का भी हाल में कहना है कि कश्मीर में पत्थरबाजी के व्यवसाय का रुप ले चुकी है। युवा कश्मीरी पत्थरबाज अलगाववादी नेताओं के बहकावे में में आकर सेना, CRPF तथा अन्य सुरक्षा बल पर पथराव करते हैं। हालांकि कुछ समय पूर्व पत्थरबाजों की गतिविधियों में कुछ कमी आ गई थी लेकिन अब एक बार फिर उन्होंने अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं जिसका खामियाजा सुरक्षा बलों के सदस्यों के साथ साथ स्थानीय लोग तथा यहां घूमने आए पर्यटकों को भी भुगतना पड़ रहा है।
2 मई को दक्षिण कश्मीर के जाबूरा क्षेत्र जो शोपियां जिले में है, पत्थरबाजों ने एक स्कूल बस को निशाना बनाया। इस निशाने से दो बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए लेकिन इस घटना के महज़ 5 दिन बाद 7 मई को पत्थरबाजों ने श्रीनगर बारामुला हाईवे पर स्थित नारबल के पास दक्षिण भारत के चार वाहनों पर हमला कर दिया जिससे चेन्नई से कश्मीर घुमाने आए एक युवक की मौत हो गयी तथा उसके कुछ अन्य साथी व उत्तरी कश्मीर की एक युवती गंभीर रूप से घायल हो गई। उक्त दोनों घटनाओं  के बाद प्रदेश में पत्थरबाजों के विरुद्ध रोष भड़क उठा है। यह घटाएं ऐसे समय में हुई हैं जबकि कुछ समय पूर्व गृह मंत्रालय ने सुरक्षाबलों के साथ एनकाउंटर स्थलों पर पत्थरबाजों के हमलों पर नाराजगी जाहिर की थी और प्रदेश सरकार से पूछा था कि 9000 से अधिक पत्थरबाजों को माफी देने के बावजूद वह इनकी गतिविधियों पर अंकुश क्यों नहीं लगा पा रही है।

यह पहला मौका है जब सभी ने इसकी निंदा की है। जरुरतमंदों को कम नहीं मिल रहा है और बच्चों को शिक्षा। जब सरकार इस कदर विफल हो जाए तो ये राज्य सरकार की ही नाकामी है। वास्तव में देखा जाए तो ये जम्मू-कश्मीर सरकार की विफलता ही है कि वो युवाओं को सही दिशा नहीं दे पाई और राज्य में क़ानून व्यवस्था को बिगड़ने से नहीं रोक सकी। ऐसे में ये सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या ये सब सरकार की शह पर तो नहीं है?
हालांकि उक्त दो घटनाओं के बाद ये जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने अपने ट्वीटर पर लिखा कि “जम्मू कश्मीर में एक पर्यटक की मौत मानवता की हत्या है। इस घटना से मेरा सर शर्म से झुक गया है। जो लोग किसी को मारने के लिए पत्थर उठाते हैं उनका कोई धर्म नहीं होता यह घटना कश्मीर की मेहमाननवाजी परंपरा और मेहमानों के प्रति सम्मान की भावना के विरुद्ध है।“ महबूबा की या राय राजनीतिक नहीं है इसलिए कहा जा सकता है कि ये चिंताजनक है। अब तो जम्मू कश्मीर के अलगाववादी नेताओं में मीरवाइज उमर फारूक, सैयद अली शाह गिलानी और यासीन मलिक ने भी पर्यटकों पर हमले की निंदा की है।
भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इस घटना को शर्मनाक करार देते हुए कहा कि “कश्मीर में पत्थरबाजों के निशाने पर आए हुए सैलानी की मौत घोर निंदनीय है।” जम्मू कश्मीर की आय का मुख्य स्रोतों में पर्यटन भी एक है। जिस का राज्य में दो दशक से अधिक समय से जारी आतंकवाद के कारण भट्टा बैठ चुका है कश्मीर सरकार इसे पटरी पर लाने की कोशिश कर रही थी जिस पर इस घटना ने पानी फेर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री एवं वर्तमान में नेशनल कांफ्रेंस के कार्यवाहक अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह कठोर सच्चाई है कि हमने एक पर्यटक तथा एक मेहमान की जान ली है और वह भी इन पत्थरबाजों के तरीकों को सही ठहराते हुए। मैं इन गुंडों पर इनके तरीकों या विचारधारा का समर्थन नहीं करता।” अब तो इस घटना ने पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों, होटल मालिकों से लेकर टैक्सी चालकों तक आदि को चिंता में डाल दिया है। ट्रेवल एजेंट्स एसोसिएशन कश्मीर के प्रधान अशफाक सिद्दीकी के अनुसार यह घटना कश्मीर पर्यटन में ताबूत में अंतिम कील साबित हो सकती।

चूँकि पत्थरबाजी से जनजीवन भी प्रभावित होता है। बच्चों की शिक्षा, जन स्वास्थ्य और स्थानीय लोगो की सुरक्षा भी अस्त-व्यस्त होती है। पत्थरबाजी कोई बीमारी नहीं बल्कि एक सडांध जिसकी वजह केवल राजनीतिक ही ज्यादा नज़र आ रही है। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की गठबंधन सरकार है। लेकिन संविधान को राजनैतिक गठबंधन, साझा या आवश्यकता अथवा अनिवार्यता से कोई मतलब नहीं है। महबूबा-भाजपा गठबंधन सरकार पूरे राज्य में क़ानून का शासन स्थापित करने के लिए उतरदायी है।  राज्य सरकार को कश्मीर में रह रही आवाम को समझाना होगा कि अलगाववादियों से प्रेम करना देश के साथ गद्दारी करना है। अलगावादियों को भी खुद की भलाई के लिए यह समझाना होगा कि विदेशी टुकड़ों पर ज़िन्दगी आगे नहीं बढ़ सकती। अतः खून खराबा करके आतंकवादी व पत्थरबाज अपनी और अपने लोगों की ही हानि कर रहे हैं। ऐसी घटनाएं होती रहेंगी तो प्रदेश के हालात कभी भी सामान्य नहीं हो सकेंगे और केंद्र सरकार की मदद पर जिंदा प्रदेश की रही सही अर्थव्यवस्था भी नष्ट हो जाएगी जिसका खामियाजा जम्मू कश्मीर के लोगों को ही भुगतना पड़ेगा।
कश्मीर के निवासियों को समझना होगा कि अलगाववादियों की सच्चाई क्या है! आपको ये भी समझाना होगा कि कश्मीर की आवाम देश की अन्य आवाम की तरह ही आज़ाद है और रहेगी। देश का संविधान की कोई भी एक लाइन कश्मीर की जनता को कुछ भी संवैधानिक अधिकारों या कर्तव्यों में भेदभाव नहीं करती। ऐसे में समझना होगा कि अलगाववादियों के अलावा आपको कौन है जो गुलाम बता रहा है? हां हुर्रियत जैसे संगठनों ने जरुर कश्मीर के युवाओं को गुलाम बना रखा है। कश्मीर के युवाओं को चाहिए कि वे पत्थर या बंदूकें उठाने से पहले एक बार जरूर सोचे कि “आखिर यासीन मालिक और बिट्टा कराटे जैसों ने बंदूके क्यों फैंक दी? आप इस बात को समझे कि हथियार उठाने की बजाए देश की राजनीति, सेवा क्षेत्र या व्यापार क्षेत्र आपके लिए ज्यादा लाभदायक है। इसलिए समाय रहते अपने आप को बेहतरी की ओर ले जाएं न कि जन्नत के नाम पर जहन्नुम को हासिल करें। जो कुछ है बस  हमारा जीवन ही है इसे बर्बाद न करें। ये सेना और देश आपका भी है और गर ज्यादा गलफ़त हो तो बेहतर होगा आप एक बार पाकिस्तान का दौरा मुकम्मल कर आयें।

पाकिस्तान और चीन को चाहिए की वो अपने देश में व्याप्त समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करें। चीन को दरकार है कि एक अच्छा पड़ोसी बनकर खुद के अस्तित्व की रक्षा करे। पाकिस्तान को अपने अतीत को याद रखना चाहिए वर्ना अगर कोई माननीय इंदिरा गाँधी या उससे ऊपर की शख्सियत उभरते ही जो होगा उसका पाक अफ़सोस भी नहीं कर सकेगा। यहां भारत सरकार को भी यह समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर राज्य में संविधान के शासन का परखच्चे उडाये जा रहे हैं और विदेशी ताकते हावी होने की कोशिश कर रही है। इस तरह के कृत्य देश के लिए निश्चित ही दूरगामी रूप से प्रभावी हो सकती है। वास्तव में यह समूचे देश के लिए चिंता का विषय है। इसलिए समय रहते इनका उपचार अनिवार्य समझा जाए। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसे दुनिया की कोई ताकत अलग नहीं कर सकती। स्पष्ट है कि कश्मीर में पत्थरबाजों की पत्थरबाजी अलगाववादियों के बहकावे में आकर किया गया नादानीपूर्वक वह अपराध है जिसकी सजा लोकतंत्र में हर बार बक्शी नहीं जा सकती। जय हिन्द।
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