डॉ. नीरज मील
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में चीन यात्रा
की। चीन की यात्रा कैसी रही और क्या गुल खिलाएगी? चीन
कैसा है? यह हम सब अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन कूटनीतिक रूप से यह जरूरी होता है कि प्रधानमंत्री देश के प्रतिनिधित्व
के रूप में वहां जाए। जहां संबंध थोड़े तल्ख हैं
ऐसे में चीन की यात्रा करना भी बेहद जरूरी था। चीन की जो फितरत है वह हमेशा भारत के प्रति एक के
अलग तरीके की रही है। अन्य देशों की बात की जाए
तो चीन ने हमेशा भारत के साथ वह सलूक किया है जो कोई दुश्मन के साथ भी नहीं करता। चीन करोड़ों अरबों रुपए का व्यापार भारत में होता
है। यह चीन को भी पता है कि अगर अपना व्यापार भारत से
रुक जाए या अब बंद हो जाए तो हम कहां जाएंगे? आप भी देखें, सबसे ज्यादा जो सामान
हम काम में लेते हैं वह चीन का ही सामान होता है।
डोकलाम में भारत चीन के बीच 72 दिन के टकराव के खत्म होने के ठीक 8 माह बाद, भारत और चीन के नेता चीन के चित्र में खूबसूरत शहर वहान के बागों में शहर कर रहे थे। झील की कश्ती में बैठकर चाय पर चर्चा हो रही थी। डोकलाम टकराव के दौरान चीन के सरकारी मीडिया ने तो युद्ध तक की धमकी दे डाली थी। उनकी सेना के प्रवक्ता ने भारत को चेतावनी दी थी कि 1962 के युद्ध का सबक भूल गया है। लेकिन अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई मुलाकात को एक नए संबंध के लिए जमीन तैयार करने वाली बता रहे हैं। एक नए अध्याय की शुरुआत करने की बात भी चीन द्वारा हो रही हैं। लंबी मुलाकात के दौरान क्या बात है यह तो शायद कभी भी पता नहीं चले
डोकलाम में भारत चीन के बीच 72 दिन के टकराव के खत्म होने के ठीक 8 माह बाद, भारत और चीन के नेता चीन के चित्र में खूबसूरत शहर वहान के बागों में शहर कर रहे थे। झील की कश्ती में बैठकर चाय पर चर्चा हो रही थी। डोकलाम टकराव के दौरान चीन के सरकारी मीडिया ने तो युद्ध तक की धमकी दे डाली थी। उनकी सेना के प्रवक्ता ने भारत को चेतावनी दी थी कि 1962 के युद्ध का सबक भूल गया है। लेकिन अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई मुलाकात को एक नए संबंध के लिए जमीन तैयार करने वाली बता रहे हैं। एक नए अध्याय की शुरुआत करने की बात भी चीन द्वारा हो रही हैं। लंबी मुलाकात के दौरान क्या बात है यह तो शायद कभी भी पता नहीं चले
गौर फरमाने वाली बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुन में फिर चीन की
यात्रा करने जा रहे हैं। उस यात्रा से 2 महीने पहले उनके लिए जो वहान में विशेष लाल गलीचा बिछाना जैसा विदेशी मीडिया
कह रहा है विशेष महत्व रखता है। मिडिया कुछ भी कहे पर प्रश्न उए उठता है कि दोनों देशों के नेताओं को मुलाकात
की जरूरत क्यों पड़ी? कारण इस वक्त दुनिया की में भारी उठापटक हो रही है। चीन का ढ़ांचा जो तैयार किया गया था वह अब चरमरा
रहा है। वर्तमान वैश्विक परिपेक्ष में देखे तो भारत और चीन जो दुनिया के लगभग एक तिहाई का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में यह यह समझ लेना कि आपस में झगड़ने की बजाय दोनों देशों के बीच जो
भी विवाद है उसे खत्म करना ही हितकारी है। इसके लिए चीन और भारत आपस में बैठकर तनाव और कम करें ताकि विशेष तौर पर डोकलाम
जैसी स्थिति फिर ना बने।
वैसे इस समय चीन के राष्ट्रपति शी
जिनपिंग के लिए पिछला कुछ समय अच्छा नहीं रहा। राष्ट्रपति शी जिनपिंग जो कि
आजीवन चीन के राष्ट्र पति बने रहना चाहते हैं, जिस कारण उन्हें सम्राट सिंह बजाना
शुरू कर दिया था हो गया था। राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस चाहत में
भी चीन की पीपुल्स कांग्रेस द्वारा रुकावटे डालनी शुरू कर दी। इस तरह अचानक बाजी पलटने शुरू हो गई। बाजी को इस तरह से पलटने वाले पलटे का नाम है
डोनाल्ड ट्रंप। इसी बीच जो अमेरिका रूस के
पीछे पड़ा रहता था आज उसीने चीन को मुख्य खलनायक घोषित कर दिया है। अमेरिका की व्यवस्था तो अभी भी रूस को मुख्य खलनायक
समझती है। ट्रंप पुतिन को नाराज नहीं
करना चाहते हैं और चुप रह नहीं सकते इसलिए उन्होंने चीन के साथ ‘ट्रेड वार’ शुरू
कर दी है। बीजिंग के सींघना विश्वविद्यालय
के एक रिसर्चर ने लिखा है कि ‘अमेरिका द्वारा शुरू किये गए ट्रेड युद्ध ने चीन को
भारत की तरफ एक समझदारी वाला रवैया अपनाने को मजबूर किया है।’ डोनाल्ड ट्रंप की इस चुनौती
से शी जिनपिंग स्थिति पतली हो गयी है। अमेरिका की दखल के बाद उतरी कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने दक्षिण
कोरिया के राष्ट्रपति से हाल ही में मुलाक़ात की और अपना परमाणु कार्यक्रम रोकने की
घोषणा की है। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम से चीन को अलग रखा गया है। जो वास्तव में वैश्विक स्तर पर चीन की कमजोर होती पकड़ का सबूत है। लिंगनान विश्वविद्यालय, हांगकांग के प्रोफेसर जंग बाओ ने भी स्वीकार किया है कि “इस तरह प्रतिष्ठा में आई कमी
चीन के लिए बहुत बड़ी समस्या है। शी जिनपिंग इस मुगालते में थे कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर
निर्धारित होने वाले संबंधों में चीन मुख्य घटक है लेकिन अचानक चीन अप्रासंगिक हो
गया।”
अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भी स्थिति हमारे मुहल्लों, गलियों, गाँव और ढाणियों
जैसी हैं। अमेरिका के सताए हुए और
उत्तर कोरिया से ठुकराए हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अतीत के पन्नों पर
पत्थर रखते हुए भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दुसरे हाथ में
दुधारा छुरा न हो। चीन भारत तथा अमेरिका की नजदीकी को भी नापसंद करता
है। विशेष तौर पर चार शक्तियों यथा - अमेरिका भारत
जापान तथा ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन भले ही बहुत प्रभावी न हो लेकिन फिर भी चीन को
चुभ रहा था। इसी लिए शी जिनपिंग भारत को
अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं।
चीन अभी तक को चीन से कमतर बताते नहीं थकते थे। हमें बताया गया कि उनकी अर्थव्यवस्था हम से 5 गुना
और रक्षा बजट 3 गुना अधिक है। लेकिन अब अचानक वही चीन हमें सद्भावना के बारे में बताया जा रहा है। जबकि इतिहास साक्षी है कि चीन सद्भावना का केवल खोल
ओढ़ता है। सद्भावना को लेकर कुछ नहीं
करता केवल राष्ट्र हित को आगे रखते हैं। इसलिए भारत को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। चीन को या शी जिनपिंग को भारत की चिंता नहीं है केवल नाटक कर रहे हैं। चीन को शी जिनपिंग केवल ट्रंप तथा किम द्वारा दिए
गए झटकों से उबारना चाहते हैं ताकि चीन लोगों को लगे कि वे अभी भी प्रासंगिक हैं। स्पष्ट है भारत भी दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी
शक्ति है जिसका फायदा उठाकर शी चीनी अर्थव्यवस्था को व्यापार में अमेरिका से मिले धोखे की भरपाई करना चाहते हैं
उन्हें भारत का बाजार चाहिए। चीन और भारत के बीच 84 अरब डॉलर का व्यापार था लेकिन यह भी चीन की तरफ झुका
हुआ है। भारत को 50 अरब डॉलर का घाटा है। 2014 में शी जिनपिंग ने आगमी 5 वर्षों में भारत
में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी उसमें से एक चौथाई भी नहीं आया।
भारत की प्रगति के लिए चीन के साथ
बेहतर संबंध कोई अनिवार्य शर्त नहीं है और न हमें चीन का बाज़ार चाहिए। चीन पूरी तरह से अपने बाज़र भारत के
लिए खोलने को तैयार नहीं है। हाँ चीन को
अपनी अर्थव्यवस्था को बीमारू होने से रोकने के लिए भारत के बाज़ार की सख्त जरूरत है। सनकी डोनाल्ड डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए मोदी भी चीन गए, चुनावी वर्ष में जहां तक
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सवाल है यह शिखरवार्ता उनकी कूटनीतिक कामयाबी
है। भारत रूस से एस-400 मिसाइल
सिस्टम खरीदने जा रहा है और में ऐसे शिखर सम्मेलन तथा अच्छे संबंधों का नुकसान
नहीं होना चाहिए। देश की परिस्थितियां कुछ भी हो लेकिन एक बार फिर नरेंद्र मोदी की अंतरराष्ट्रीय स्टेटमेंट की छवि चमकने लगी है। जहां तक भारत की बाधाओं का सवाल है तो आगे बहुत सी
बाधाएं भी हैं। बड़ी समस्या यह है 3428
किलोमीटर सीमा है जिस पर चीन द्वारा 2016 में 273 अतिक्रमण हुए और 2017 में 426
अतिक्रमण हुए थे। चीन के साथ सीमा विवाद के
बारे में पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का कहना बहुत सटीक है कि ‘इस समस्या का कोई
समाधान नहीं है दोनों में से कोई पीछे नहीं हट सकता चीन ने उसके साथ अपना सीमा
विवाद खत्म कर लिया है। कई दौर के बावजूद भारत के
साथ चीन लटकाता रहता है इस समस्या को ताकि जब चाहे तनाव खड़ा किया जा सके। चीन द्वारा पाक स्थित आतंकवादियों का विभिन्न
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बचाव करना भी अविश्वास पैदा कर रहा है। चीन हमें एनएसजी का सदस्य भी नहीं बनने दे रहा है। चीन जानता है कि भारत के हाथ में भी कुछेक दुखती
रग है जैसे एक तिब्बत है। इस वक्त तिब्बत ने चीन को
खुश करने के लिए दलाई लामा को पृष्ठभूमि में डाल दिया गया है लेकिन चीन जानता है
कि सबसे अधिक विस्थापित तिब्बती भारत में रहते हैं और वह सब चीन से नफरत करते हैं
दलाई लामा का रवैया भी कुछ लचीला हुआ नहीं है। चीन की बड़ी शिकायत है कि एशिया में जिनपिंग
द्वारा शुरू किए गए आर्थिक गलियारे ओबीओआर(वन बेल्ट वन रोड) का भारत विरोध कर रहा
है। चीन ने इस गलियारे पर बहुत निवेश कर चूका है और इस
वजह से घबराहट है कि भारत इस सारी योजना को अस्थिर कर सकता है। आपसी अविश्वास दोनों तरफ है। तमाम उक्त कारणों की वजह से दोनों देशों के दरमियां सम्बन्ध
होना कठिन ही नहीं असंभव सा लगता है। इसलिए दोनों देशों के बीच विश्वास
कायम होना बेहद जरुरी है। मोदी और शी की हाल ही में हुई ये मुलाक़ात क्या गुल
खिलाती है ये तो वक्त ही बतायेगा क्योंकि हमने एक ऐसी ही हाई प्रोफाइल मुलाक़ात का
नतीज़ा अघोषित युद्ध(कारगिल) झेल चुके हैं। खैर, इस मुलाक़ात से पनपा अच्छा माहौल कब तक चलता है इंतज़ार ही करना पड़ेगा। यह भी उल्लेखनीय होगा कि इस हाई प्रोफाइल मुलाक़ात
से एक भी मसला सुलझा नहीं बातचीत अच्छी हुई लेकिन टकराव भविष्य में फिर भड़क सकता
है। चीन का पाकिस्तान में आर्थिक दखल जिसे भारत आर्थिक
कम और रणनीति कारक अधिक समझता है भारत को चोट पहुंचा सकता है। भारत पर चीन फिर अप्रत्याशित कदम उठा सकता है
इसलिए हमारा प्रयास होना चाहिए कि विशेष तौर से सीमा पर पूरी तैयारी होनी चाहिए। हालांकि इस नए माहौल को देखकर पाकिस्तान को जरुर
गश पड़ रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज
शरीफ हो या फिर पाक मीडिया सब विलाप कर रहे हैं। पाक मिडिया के अनुसार ‘सभी मौसम के दोस्त’ तथा ‘इस्पाती
भाई’ चीन ने पाकिस्तान के दुश्मन भारत से हाथ मिला लिया है। दी डॉन अखबार में खुर्रम हुसैन ने लिखा है कि “भारत
तथा चीन के बीच महत्वपूर्ण बदलाव हो रहा है संबंधों में गर्माहट का पाकिस्तान के
लिए गहरा पर फंसाव है।” द डॉन अखबार की तरह ही दुखी
पाठक भी संपादक के नाम पत्र लिख रहे हैं कि ‘हम मुसीबत में हैं हमारा नकली दोस्त
चीन’ ‘चीन पाकिस्तान की फौलादी दोस्ती किधर गई’ आदि आदि, खैर ये भी चीन और
पाकिस्तान की साझा नीति का हिस्सा हो सकते हैं। सार यही है कि “भारत को सामान्य और सहज भाव से इस
स्थिति को देखना होगा और उचित कदम उठाना होगा। हम बिना चीन की दोस्ती के अच्छे से रह सकते हैं लेकिन देश
के आंतरिक मुद्दों को हवा नहीं होने देना है। जय हिन्द!
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