Watch

Saturday 26 May 2018

क्या सच में अरुणाचल भारत से फिसल रहा है?

                       -डॉ. नीरज मील

भारत और चीन के बीच विश्सनीय रिश्ते की कल्पना करना फिलहाल के लिए बेमानी ही है। इसी माह के तीसरे सप्ताहंत भारत के अरुणाचल प्रदेश में चीन द्वारा किया जा रहा खनन अभियान अरुणाचल प्रदेश के इलाकों में पहुचने की थी और कहा गया था कि हिमालय दूसरा दक्षिण चीन सागर बन सकता है। हालांकि चीन के सरकारी मीडिया ने उस रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया था। लेकिन क्या ये खबर पूर्णत: गलत थी? जहां धुँआ होता है वहाँ आग अवश्य ही होती है भले ही वो जली हुई हो या बुझी हुई। हॉन्ग कॉन्ग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट (एससीएमपी) में 20 मई को एक रिपोर्ट छपी थी कि चीन ने बड़े पैमाने पर ह्युन्ज़े में खनन शुरू किया है, जहां क़ीमती खनिज पदार्थ मिले हैं। चीनी मीडिया का कहना है कि एससीएमपी में छपी रिपोर्ट भारतीय मीडिया की उन रिपोर्टों की तरह ही है जो चीन-भारत के बीच संवेदनशील मुद्दों को उकसाने का काम करती हैं।
पिछले साल गर्मियों में भारत और चीन के बीच सीमा पर गतिरोध के कारण लंबे समय तक तनाव का माहौल रहा था। हाल के सालों में भारत और चीन की तरफ़ से सीमाई इलाक़ों में आधारभूत ढांचा विकसित करने के लिए व्यापक पैमाने पर पैसे और श्रम झोंके गए हैं। ऐसे में चीन और भारत के दरमियाँ बेहतर रिश्तों की उम्मीद नहीं की जा सकती। भारत के साथ नया सैन्य तनाव पैदा करने की फिराक में है चीन। पेइचिंग जैसे कई मुद्दे है चीनी व्यूहरचना में जो डोकलाम विवाद के बाद भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश अगले बड़े विवाद की वजह बन सकते हैं। चीन हमेशा से कहता रहा है कि उसने कभी भी भारत के अभिन्न राज्य अरुणाचल प्रदेश का अस्तित्व स्वीकार ही नहीं किया है और यह दक्षिण तिब्बत का हिस्सा है।इतना ही नहीं बीच-बीच में चुपके से अरुणाचल प्रदेश में अपने सैनिकों की घुसपैठ भी कराने की फिराक में ही रहता है। 20 मई को छपी एससीएमपी रिपोर्ट यह बात सामने आई थी कि चीन ने बड़े पैमाने पर ह्युन्ज़े इलाके में खनन शुरू किया है, जहां क़ीमती खनिज पदार्थ मिले हैं। एससीएमपी की इस रिपोर्ट के अनुसार चीन इस खनन के ज़रिए दक्षिणी तिब्बत पर फिर से दावा करना चाहता है। भारत के अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिण तिब्बत कहता है। ह्युन्ज़े दक्षिणी तिब्बत में है और दक्षिणी तिब्बत के कुछ हिस्से को चीन अरुणाचल प्रदेश में भी बताता है।भले ही चीन का सरकारी मीडिया कुछ भी कहता हो लेकिन भारत को सजग होने सख्त जरूरत है।
एससीएमपी की रिपोर्ट का शीर्षक है- हिमालय में चीनी खनन से भारत और चीन के बीच नया सैन्य तनाव पैदा होने की आशंका। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि गहरी सुरंगें खोदी जा रही हैं। इसके साथ ही बिजली पहुंचा दी गई और इलाक़े में एक एयरपोर्ट का भी निर्माण चल रहा है। इस रिपोर्ट में बीजिंग स्थित चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ़ जियोसाइंस के एक प्रोफ़ेसर का भी कोट है। उन्होंने कहा है कि हिमालय में चीनी आबादी तेजी से बढ़ रही है और उसे देखते हुए खनन का काम किया जा रहा है। इसके इस इलाक़े में आबादी को स्थिरता मिलेगी और किसी भी तरह के सैन्य अभियान को भारतीय क्षेत्र में अंजाम देने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा है कि यह दक्षिण चीन सागर की तरह ही है। इस रिपोर्ट में वुहान स्थित चाइनीज एकेडमी ऑफ़ साइंस के एक रिसर्चर का भी कोट है। उस रिसर्चर का यह भी कहना है कि चीन ने जो दक्षिण चीन सागर में किया है वही हिमालय में करने की रणनीति पर काम कर रहा है।भले ही चीन तात्कालिक रूप से कुछ कम सोचता हो। लेकिन हकीकत यही है कि चीन सोच रहा है और भारत अभी भी हिन्दू-मुस्लिम की डिबेट में उलझा हुआ है। इस लिहाज़ से चीन कम नहीं बल्कि बहुत कुछ सोच रहा है। इन सब के बीच भारतीय नेतृत्व फिलहाल मौन ही नज़र आ रहा है जो वास्तव में चिंताजनक है।
इसी बीच भारतीय मीडिया में हंगामा इस रिपोर्ट को लेकर हंगामा जरुर हुआ है। एससीएमपी की रिपोर्ट को भारत के बड़े मीडिया घरानों ने हाथोहाथ ले लिया। भारतीय मीडिया में में ख़बर को सनसनीखेज शीर्षक के साथ पेश किया गया- एक और टकराव के आसार, चीन अरुणाचल के पास कर रहा सोने का खनन जैसे शीर्षकों में इस बात को उठाया गया। लेकिन बावजूद इसके भारतीय राजनीतिक गलियारों में इस मुद्दे को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं देखी गयी। भारतीय मीडिया में यह भी कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन गए एक महीना भी नहीं हुआ है और ये सब शुरू हो गया। भारत की कई न्यूज़ वेबसाइट में भारत और चीन के रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाए गए।  टाइम्स ऑफ इंडिया की संपादकीय में भी चीनी मंशा को कटघरे में खड़ा किया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है खनन को लेकर दोनों देशों को अपनी शंकाएं दूर करनी चाहिए। इसी तरह कई अख़बारों और न्यूज़ वेबसाइटों ने इस रिपोर्ट को प्रमुखता से जगह दी। सपष्ट है कि इस मुद्दे पर भारत का राजनीतिक पक्ष कमजोर रहा क्योंकि इससे बड़ा मुद्दा था कर्नाटक में किसी एक दल का सरकार बनना। भारत के राजनैतिक दलों का नैतिक बल पूरा का पूरा कर्नाटक में लगा हुआ था।
 डोकलाम मुद्दे पर मुहकी खाकर घबराए हुए चीन ने आनन-फानन में इसे बेबुनियाद हंगामा करार दिया। चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि एससीएमपी की रिपोर्ट में तथ्यों का अभाव है और दक्षिण चीन सागर से तुलना कर तो हद ही कर दी गई है। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि पहली नज़र में ही चीनियों को यह रिपोर्ट झूठी लगी। यह भारत और चीन के रिश्तों में दरार डालने की कोशिश है। लेकिन चीन का यह अखबार खुद तथ्यविहीन नज़र आ रहा है। उसे ये भी नहीं पता कि चीन और भारत के बीच कोई रिश्ता भी है या नहीं। ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा है कि इस रिपोर्ट से भारत को परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। अख़बार ने लिखा है कि सीमा विवाद दो सरकारों को सुलझाना है न कि मीडिया को। ऐसी रिपोर्ट से जनभावनाओं को उकसाने काम किया जाता है। चीन को ये समझाना ही होगा कि वो भारत से बेवजह दूरी को और न बढाए। भारत सरकार को भी चाहिए कि वो चीन के साथ इन मुद्दों पर सख्ती से नजर रखते हुए अपने चातुर्य का परिचय दे।
चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसने एससीएमपी की रिपोर्ट का संज्ञान लिया है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि एससीएमपी की रिपोर्ट में जिस इलाक़े का ज़िक्र किया है वो पूरी तरह से चीन का इलाक़ा है। मंत्रालय ने कहा है, ''चीन अपने इलाक़े में शोध का काम नियमित रूप से करता है। यह हमारी संप्रभुता के अंतर्गत आता है। हमें उम्मीद है कि मीडिया इन मुद्दों को सनसनीखेज नहीं बनाएगा।'' बात यहां तक ठीक है लेकिन उसकी संप्रभुता इतनी बड़ी भी नहीं है कि उसके मोबाइल नेटवर्क भारत के क्षेत्र में आने लगे। अरुणाचल प्रदेश का किबिथू और काहो इलाका इस बात का जीता जागता उदाहरण है। ऐसे में संप्रभुता की बात करने वाले चीन को यह भी समझना होगा कि ये भारत भी एक संप्रभुत्व सम्पन्न देश है और ऐसे मुद्दों को निपटाने में सक्षम भी है। भारत की सरकार को भी चाहिए कि भारत की आजादी के 71 साल बाद भी चीनी सीमा के नज़दीकी इलाके सड़क और मोबाइल नेटवर्क के इंतजार में वहां काम करें। सामरिक दृष्टि से हमे सोचना होगा कि अगर सड़क संपर्क टूटा तो सैनिकों या साजो-सामान को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना असंभव होता है। ऐसे में आपात स्थिति में हमारी सेना को परेशानी उठानी पद सकती है। जहां भारत के ये इलाके मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं वहीँ इस इलाके में चीन के 14 एयरबेस, व्‍यापक रेल नेटवर्क और 58000 किलोमीटर लंबी सड़कें है। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 4057 किलोमीटर लंबी एलएसी पर हर जगह यही स्थिति है।
डोकलाम का मुद्दा हो या अरुणाचल प्रदेश का मामला हो चीन को इस बात से फर्क नहीं पड़ता है कि उसके सामने उसका दुश्मन कौन है। चीन की सिर्फ एक चाहत है कि किसी भी तरह डोकलाम और अरुणाचल के मुद्दे पर उसे कामयाबी हासिल हो। इसीलिए चीन समय-समय पर नए-नए मुद्दे खड़े करता रहता है। चीन पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि तवांग के बिना भारत के साथ सीमा विवाद नहीं सुलझाया जा सकता है। ये बात अलग है कि भारत सरकार का स्पष्ट मत है कि अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता है। लेकिन यहां केवल मत सपष्ट करने से कुछ नहीं होगा। भारत सरकार को चाहिए कि वो तिब्बत के मुद्दे को फिर से खड़ा करे। चीनी सीमा पर सामरिक महत्व से सम्बंधित निर्णयों में तेजी लाए। अपनी वैश्विक स्तर पर वर्तमान सशक्त छवि की ताकत को इस्तेमाल करे। अब समय आ गया कि भारत को भी अपनी पुरानी और अप्रासंगिक हो चुकी विदेश नीति को बदल दे। वैश्विक स्तर पर भारत को भी विस्तारवादी नीति अपनानी होगी। पाक अधिकृत कश्मीर और चीन द्वारा अधिकृत क्षेत्र पर आक्रमक रुख अपनाए….इंक़लाब जिंदाबाद!


*Contents are subject to copyright                           
                                                                                            Any Error? Report Us

No comments:

Post a Comment