- डॉ. नीरज मील
मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य किसी भी कार्य को करने से पहले खुद की सुरक्षा के
बारे में सोचता है। लेकिन सोशल साइट्स पर यह अपवाद के रूप में ही देखने
को मिल सकता है। सूचना और प्रौद्योगिकी का यह जमाना लोगों के लिए
परेशानी का सबब बनता दिखाई दे रहा है। हाल ही में फेसबुक डाटा चोरी से जुड़े मामले ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख
दिया। यह मामला अभी शांत हुआ ही नहीं था कि एक और तहलका
सबके सामने आ गया ट्वीटर स्कैंडल। फेसबुक डाटा चोरी के कारण फेसबुक के मालिक मार्क ज़ुकरबर्ग को भी खामियाजा
चुकाना पड़ा और यह खामियाजा 4 अरब रुपए के करीब रहा। सूचना और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल जिस तरह से विश्व भर में हो रहा है वह
वास्तव में इसकी उपादेयता और उपयोगिता को इंगित करता है। लेकिन इसके साथ-साथ यह लोगो के लिए कुछ लोग भी
लेकर आ रहा है। आरोपों की बात की जाए तो
फेसबुक पर डाटा चोरी या विक्रय के आरोप पहले भी लग चुके हैं। हाल ही में अमेरिका में हुए
चुनाव में ट्रंप की जीत है में भी फेसबुक को एक बड़ा घटक माना गया था। इस संदर्भ में यह भी आरोप लगाया कि रूस ने हैकिंग करके
जीत दिलाई है। लेकिन अब सवाल यह उठता है
कि क्या निजता में दखल अंदाजी जायज है? निजता किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत नाम मामला
है?
आज समूचे विश्व में निजता को लेकर बवाल मचा हुआ है। ऐसे में इस तरह के सवाल उठना लाजमी है। इन्टरनेट पर सेंधमारी आम बात रही है। सेंधमारी को लेकर कयासबाजी तो शुरू से ही चल रही है। हां चर्चाएं कभी हो जाती हैं तो कभी कहीं न कहीं सुप्त अवस्था में बैठ जाती हैं। तो कहीं फिर से उठ खड़ी होती हैं। अर्थात् सेंधमारी भी इन्टरनेट सिस्टम का एक हिस्सा है। सूचनाओं में सेंधमारी, सूचनाओं की
चोरी और सूचनाओं का विक्रय तीनों अलग-अलग बातें हैं। इसी गहमागहमी के बीच अब ट्वीटर की भी कलाई खुल गयी
है। सामने आया है कि ट्वीटर
द्वारा भी कैंब्रिज एनालिटिका रिसर्च के हाथों यूजर्स के डाटा का सौदा किया गया है। यूजर्स की जानकारी में लायें
बिना, सहमति के बिना ही ट्वीटर द्वारा करीब 87 मिलियन उपयोगकर्ताओं की सूचना को
एकत्रित कर बेच दिया। फेसबुक के डाटा में
सेंधमारी का मुख्य आरोपी अलेक्जेंडर कोगन ने ट्वीटर के उपयोगकर्ताओं के डाटा को भी
एक्सेस किया था। अलेक्जेंडर कोगन ने ट्वीटर का
डाटा लेने के लिए एक कमर्शियल फर्म जीक्यूआर(ग्लोबल क्विज रिसर्च) के साथ मिलकर
काम किया। द गार्जियन डॉट कॉम के मुताबिक़ अलेक्जेंडर कोगन ने फेसबुक के 30 मिलियन उपयोगकर्ताओं की निजी सूचनाओं को भी व्यक्तित्व
एप्प के जरिये काम में लिया था। 2015 में कोगन यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में साइकोलॉजी के शोधकर्ता था। व्यक्तित्व एप्प पर कोगान अब सफाई देते हुए कह रहा है कि आंकड़ों की
चोरी का आरोप तकनीकी रूप से गलत है, हमने तो बेहतर टूल्स के निर्माण डेवलपर्स की
मदद के लिए किया था ताकि वह डाटा जमा कर सके। अमेरिकी कांग्रेस के तीखे सवालों का सामना कर चुके भारत में
अमरीश त्यागी एनालिटिका के प्रमुख है जो जनता दल यूनाइटेड नेता केसी त्यागी के बेटे हैं। इनकी भूमिका डोनाल्ड ट्रंप के चुनावी अभियान में भी रही। यह कंपनी कई तरह की सेवाएं देती है। पॉलिटिकल मैनेजमेंट की सेवा के तहत देती कंपनी की प्रोफाइल
में लिखा है कि कंपनी ने किन-किन राजनीतिक दलों को सेवाएं दी। जबकि राजनीतिक दल इससे इंकार कर रहे हैं। इस मुद्दे पर अब कम्पनियां भी अपनी अपनी राग अलपा
रही हैं और कह रही है कि इस तरह सूचनाओं को चोरी करना गलत है। कंपनी जो भी कहती है, कहती
रहे लेकिन सच तो अब सबके सामने आ ही चुका है। और सच यही है कि सोशल मीडिया
और सोशल साइट्स के जरिए लोगों का डाटा चोरी होता है और बेचा भी जाता है। इस प्रकरण में भारत से भी सूचनाओं की चोरी हुई है
और भारत से जुड़ी जानकारी को बेचने के मामले में ब्रिटिश कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका
को जिम्मेदार ठहराया गया। इस पूरे मामले के सामने आने
के बाद भारत के प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गए। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो फेसबुक को चेतावनी देते हुए फेसबुक मालिक मार्क जकरबर्ग को समन भेजने की तक की बात कह
डाली थी। इससे विचलित होकर जकरबर्ग
प्रकरण में बार बार माफी मांगते नजर आए। स्पष्ट है फेसबुक हो या ट्वीटर सिर्फ लोगों को मिला ही नहीं
रही बल्कि राजनीति भी बेच रही हैं। राजनीति के साथ-साथ स्मार्ट मैसेजिंग का इस्तेमाल करते हुए लोगों की राजनीतिक
सोच को भी प्रभावित कर रहे हैं। इसी कारण हम लोगों की उम्मीदवार के प्रति भावना जागृत होती
है और हम वोटिंग करते वक्त भावना से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। अब यह भी रहस्य खुल गया कि ये सोशल साइट्स किस तरह अमीर बनती हैं। फेसबुक ने भी अप्रत्याशित कमाई इसी तरह की है। खैर आज हम सब
फेसबुक से जुड़े हुए हैं लेकिन हम में से ज्यादातर यह पता
नहीं कि सोशल मीडिया या सोशल साइट्स हमारे बारे में दी गयी जानकारी का गलत इस्तेमाल भी कर
सकती है। हमारी सूचना को किसी दुसरे के साथ बांट कर ये कम्पनियां
अपने ग्राहक की निजता को ठेस पहुंचाती है। इस प्रकार तमाम सवालों का खुलासा होने के बाद यह
बात साफ हो चुकी है कि सोशल साइट किसी भी देश या सरकार से ज्यादा ताकतवर हो चुकी
है। भारत जैसे देश में
इन बातों को लेकर अधिक सोचने की जरूरत नहीं क्योंकि हम लोगों ने सोशल साइट को अपने
प्रचार के लिए समाज में चर्चित होने के लिए दूसरों पर भद्दे कमेंट करने के लिए
राजनीतिक बहस करने के लिए ही हथियार बनाया है। लेकिन तमाम प्रकार
के मामले सामने आने के बाद अब लगता है कि अब समय आ गया है ज्यादा देर किये बगैर सजग होने
का। अब समय आ चुका है कि हम सोशल
साइट पर ज्यादा सावधान रहें, जरूरत से ज्यादा सूचनाएं साझा करने से बचे। हम निजी सूचनाओं को लेकर गंभीर सोच रखें। आप भी अपनी सोशल साइट के अपने अकाउंट से देखें तो
पाएंगे लोग अब अपनी निजता की जानकारी सोशल मीडिया पर प्रसारित कर रहे हैं ऐसे में एक
और गंभीर किन्तु यक्ष प्रश्न हमारे सामने खड़ा होता है कि ‘क्या गूगल ड्राइव पर किया
गया डाटा सेफ है?’ न केवल फेसबुक पर बल्कि
इंटरनेट पर आदान-प्रदान की गई सूचनाओं को भी सुरक्षित मानना भी एक भूल ही है। अगर यह सुरक्षित है तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह
किस तरह से सुरक्षित है? इन्हीं सवालों के बीच अपडेट स्कैंडल भी सबके सामने आएगा
है जो इस बात को और ज्यादा सटीक और मजबूती के साथ पेश करेगा कि इंटरनेट पर डेटा
चोरी आम बात है।
निश्चित तौर पर सभी से गूगल ड्राइव में भी भूल हो गयी होगी, इसलिए समय रहते
हमें इस दिशा में कदम उठाना होगा और समय रहते इस बात से परिचित होकर अपने आप को एक
अंधे कुएं में दखेलने से बेहतर होगा कि हम सचेत रहें। एक सवाल यह भी है कि क्या
भारतीय मानसिक रूप से इतने अपरिपक्व हैं कि सोशल मीडिया से प्रभावित होकर वोट
डालते हैं अगर वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो सोशल मीडिया लोगों के दिमाग और दिल
में इतनी हावी हो चुकी है। अब तो किसी विषय पर अवधारणाएं भी शोशल मिडिया के अनुरूप ही बनती हैं। इसलिए सोचने वाली बात ये हैं
कि अगर इससे भारत में एक वोट भी इधर से उधर होते हैं तो चुनाव के परिणाम बदल जाते
हैं। ऐसे में सत्ता पाने
और छिनने में कुछ गु का अंतर ही काफी
बड़ा छेद होता है। जरा सोचिए और परिपक्व बने अपने लिए और अपनी निजता के लिए हम किस हद तक जा
सकते हैं? इस बारे में विचार करना चाहिए हमें। सोचना होगा और बचाना होगा अपनी निजता को दूसरों के
हाथों में जाने से। बहुत सारे मामले ऐसे भी आए हैं जिनमें लोगों के घर भी टूटे हैं, लोगों की
निजी जिंदगी में भूचाल भी आयें है। लेकिन यह मामला अभी गिनती के हैं यानी कि कम है। हो सकता है कि मामले उभरकर सामने न आए हों लेकिन
फिर भी मामले हैं। जो सबसे बड़े दो नुकसान सोशल मीडिया के लोगों के सामने आए हैं। लोगों ने उन्हें रूबरू होने
दिया है तो अब समय आ चुका है कि हम इस बारे में सोचें और सोशल मीडिया पर अपनी निजी
जानकारी और अपने अवधारणा को परिवर्तित करने से बचें। लोगों की एक धारणा बन चुकी है कि सोशल मीडिया ही
दुनिया है लेकिन हकीकत की दुनिया तो इससे परे हैं। हां यह सही है कि सोशल मीडिया लोगों से जोड़ता है
लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं है दुसरे लोगों के अनुरूप हो जाएं। आपका स्वयं का भी वजूद है, उसे ही बनाये रखिये।
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