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Friday 25 May 2018

क्या डूब जायेंगा भारतीय स्टेट बैंक का जहाज़?

-डॉ. नीरज मील ‘नि:शब्द’



भारत में बैंकिंग की दुर्दश थमने का नाम ही नहीं ले रही। भारतीय बैंकिंग सेक्टर में बुरी ख़बरों का दौर जारी है। अब तो आलम ये है कि अगर अर्थव्यवस्था में अगर बुरी खबर आने का अंदेशा हो तो बैंकिंग क्षेत्र का नाम सबसे ऊपर आता है। यही स्थिति 2018 को लेकर पहली तिमाही थी कि मंगलवार यानी 22 मई को बुरी ख़बर देश का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक लेकर आएगा, लेकिन ये अंदाज़ा तो बड़ा सा बड़ा विश्लेषक भी नहीं लगा पाया था कि बैंक जब अपने तिमाही नतीजे घोषित करेगा तो वो बैंक के अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा घाटा होगा। भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च 2018 के नतीजे घोषित किए। बैंक ने बताया कि इन तीन महीनों के दौरान उसे 7,718 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। भारत के बैंकिंग इतिहास में ये दूसरा सबसे बड़ा घाटा है। जबकि अन्य बैंकों में घाटे के रूप में उभरे हुए बैंक क्रमशः दूसरे नम्बर पर कैनरा बैंक-4,860 करोड़ रुपये, तीसरे नम्बर पर इलाहाबाद बैंक-3510 करोड़ रुपये, चौथे नंबर पर यूको बैंक-2,134 करोड़ रुपये एवं पांचवे नंबर पर देना बैंक-1,225 करोड़ रुपये का घाटा लेकर भारतीय अर्थव्यवस्था को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं।
घाटे का इससे बड़ा आंकड़ा पिछले हफ्ते पंजाब नेशनल बैंक दिखा चुका है। ये वही बैंक है जिसे हीरा व्यापारी नीरव मोदी ने 13,000 करोड़ रुपए से अधिक की चपत लगा दी थी और इससे पहले कि बैंक और भारतीय रिज़र्व बैंक को इसका पता चलता वो आराम से विदेश फ़रार हो गए। इससे पहलेविजय माल्या भी बैंकों का करीब 10 हज़ार करोड़ रुपये लेकर ब्रिटेन रफ़ूचक्कर हो गए थे पंजाब नेशनल बैंक ने अपनी बैलेंस शीट दिखाते हुए कहा था कि जनवरी-मार्च तिमाही में उसे 13,417 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है। स्टेट बैंक को अक्तूबर-दिसंबर तिमाही में 2,416 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था यानी चौथी तिमाही में ये घाटा बढ़कर तीन गुना हो गया है। कमोबेश यही स्थिति अन्य बैंकों की है।
अब बड़ा यक्ष प्रश्न ये कि आखिर क्या है इस घाटे की वजह? देश के दूसरे सरकारी बैंकों की तरह भारतीय स्टेट बैंक भी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए के मकड़जाल में फंसा हुआ है। यानी बैंक ने अपने ग्राहकों को जो कर्ज़ दिए हैं उनमें से कई इसे लौटा नहीं रहे हैं। घाटे का आंकड़ा इतना भारी-भरकम दिखने की वजह बैंक की ओर से बढ़ाई गई प्रोविजनिंग है। इसका मतलब है कि बैंक अप्रैल-मई-जून महीने में भी डूबे कर्ज़ बढ़ने की आशंका जता रहा है। तिमाही आधार पर चौथी तिमाही में बैंक ने प्रोविजनिंग 18,876 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 28,096 करोड़ रुपए की है। सरकारी बैंकों के डूबते कर्ज़ यानी एनपीए की स्थिति कितनी ख़तरनाक है, इसकी स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2013 से साल 2017 तक इसमें 311 प्रतिशत से अधिक का उछाल आया और ये 1।55 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर साढ़े छह लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गए। 11 अगस्त 2017 को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि बैंकों की कुल संपत्ति में एनपीए का हिस्सा बढ़कर 12।47 प्रतिशत तक पहुँच गया है। हालाँकि निजी बैंक भी इस होड़ में पीछे नहीं हैं और 2013 के 19,986 करोड़ रुपये के मुक़ाबले 2017 में उनके एनपीए 73,842 करोड़ रुपये तक पहुँच गए।
हालांकि बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार को उम्मीद है इन एनपीए में से बैंक आधे से अधिक की वसूली करने में कामयाब रहेगा। एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने कहा, "स्टेट बैंक ने 12 बड़े कर्ज़दारों का नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में ले गया है और बैंक को उम्मीद है कि जब बैंकरप्सी की प्रक्रिया होगी तो बैंक का घाटा 50 से 52 फ़ीसदी से अधिक नहीं होगा।" ऐसे में एक सवाल उठाना लाज़मी है कि तो क्या बैंक का अधिकतर लोन कॉर्पोरेट को जाता है? रजनीश कुमार ने कहा कि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा, "बैंक के कुछ घरेलू कर्ज़ में रिटेल लोन का हिस्सा लगभग 57 फ़ीसदी है और बाकी का 43 फ़ीसदी कॉर्पोरेट लोन है।" इन बुरे नतीजों के पीछे की असल कहानी एनपीए की ही है। इन नतीजों की तुलना पिछले साल की इसी अवधि से की जाए तो इसमें तकरीबन 2 फ़ीसदी का इजाफा हुआ है। बैंक ने माना कि तिमाही आधार पर चौथी तिमाही में उसका ग्रॉस एनपीए 199 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 22 लाख करोड़ रुपए रहा है। तिमाही आधार पर चौथी तिमाही में एसबीआई की लोन ग्रोथ 6 फीसदी रही है। वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही में एसबीआई की ब्याज आय 52 फीसदी घटकर 19,974 करोड़ रुपए रही है। वित्त वर्ष 2017 की चौथी तिमाही में एसबीआई की ब्याज आय 21,065 करोड़ रुपए रही थी।
अब एक जिज्ञासा ये है कि ये एनपीए क्या होता है? एनपीए समझने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि बैंक काम कैसे करते हैं इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं मसलन बैंक में अगर 100 रुपये जमा है तो उसमें से 4 रुपये (CRR) रिज़र्व बैंक के पास रखा जाता है, साढ़े 19 रुपये (अभी एसएलआर 195 प्रतिशत है) बॉन्ड्स या गोल्ड के रूप में रखना होता हैबाकी बचे हुए साढ़े 76 रुपयों को बैंक कर्ज़ के रूप में दे सकता है इनसे मिले ब्याज से वो अपने ग्राहकों को उनके जमा पर ब्याज का भुगतान करता है और बचा हुआ हिस्सा बैंक का मुनाफ़ा होता हैरिज़र्व बैंक के अनुसार बैंकों को अगर किसी परिसंपत्ति (एसेट्स) यानी कर्ज़ से ब्याज आय मिलनी बंद हो जाती है तो उसे एनपीए माना जाता हैबैंक ने जो धनराशि उधार दी है, उसके मूलधन या ब्याज की किश्त अगर 90 दिनों तक वापस नहीं मिलती तो बैंकों को उस लोन को एनपीए में डालना होगा
हालांकि रिजर्व बैंक ने एनपीए से सम्बन्धित नियमों में खासा बदलाव किया हैरिजर्व बैंक ने फ़रवरी में एनपीए नियम कड़े करते हुए लगभग आधा दर्जन नियम खत्म कर दिए थे अब किसी कर्ज़ डिफॉल्ट के मामले में बैंकों को 180 दिन के भीतर उसका समाधान निकालना अनिवार्य कर दिया गया है ऐसा नहीं होने की स्थिति में उस खाते को दिवालिया प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाना होगा नए नियम के तहत 2,000 करोड़ रुपये या इससे ज्यादा के लोन डिफॉल्ट के मामलों में बैंक अधिकारियों को 180 दिन के भीतर समाधान यानी प्रोविजनिंग की योजना तैयार करनी होगी ऐसा नहीं होने पर उसे दिवालिया प्रक्रिया में ले जाना होगा। ऐसे में सवाल ये है कि तो क्या सरकारी बैंकों के तिमाही नतीजों में जो हज़ारों करोड़ रुपये का घाटा नज़र आ रहा है वो इसी नियम की वजह से है?
अर्थशास्त्री के अनुसार “कुछ हद तक ये सही है कि बैंकों में डिफॉल्ट के मामले बढ़ रहे हैं। लेकिन अब बैंकों को उसकी प्रोविजनिंग यानी समाधान के लिए सिर्फ़ छह महीने दिए गए हैं, इसलिए बैंकों को इन एनपीए को घाटे के रूप में दिखाना ही होगा। इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं है कि बैंकों का ये कर्ज़ डूब गया है और अब वसूल नहीं होगा।" लेकिन बैंकिंग मामलों पर नज़र रखने वाले जानकार इस बात को भी मानते हैं कि बैंकों के कर्ज़ देने की प्रक्रिया में खामियां हैं और इसे दुरुस्त किया जाना चाहिए। इसका एक उदाहरण है देना बैंक पर रिज़र्व बैंक की कार्यवाही। रिज़र्व बैंक ने 7 मई 2018 को देना बैंक को निर्देश दिया कि अगले निर्देशों तक वो नया कर्ज़ न बांटे और न ही किसी कर्मचारी की भर्ती करे। ये जानकारी ख़ुद देना बैंक ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को दी है।
ऐसे में सवाल ये है कि क्या भारत का बैंकिंग सिस्टम बेहद लापरवाह है? क्या ये भ्रष्ट है या फिर बैंकों के सामने आ रहे एक के बाद एक घोटाले महज एक संयोग हैं? नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल यानी एनसीएलटी की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक कई दिग्गज कंपनियों पर हज़ारों करोड़ रुपये का कर्ज़ है और ये मामले ट्राइब्यूनल में चल रहे हैं। वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज़ पर 20,905 करोड़ रुपये, जेपी ग्रुप पर 25,586 करोड़ रुपये और जायसवाल नेको पर 4,188 करोड़ रुपये का कर्ज़ है। हालाँकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ भारतीय बैंकों की इस निराशानजनक तस्वीर से इत्तेफ़ाक नहीं रखता। आईएमएफ़ ने साल 2017 में भारत के 15 बड़े बैंकों (12 सरकारी और तीन निजी बैंकों) का स्ट्रैस टेस्ट किया था और पाया था कि इन बैंकों के डूबने का कोई ख़तरा नहीं है और इनकी 64 फ़ीसदी परिसंपत्तियां बुरे वक्त को झेलने में भी सक्षम हैं।

तो क्या बैंक का बुरा दौर इन 'सबसे बुरे नतीजों' के साथ ख़त्म हो गया है। इसका जवाब भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार कुछ ऐसे देते हैं, "पिछला साल निराशा का था। ये साल उम्मीद का है और वित्त वर्ष 2020 को आप खुशियों का साल कह सकते हैं।" कुल मिला कर निष्कर्ष यही है भारतीय बैंकिंग प्रणाली में एक बेहद गंभीर गड़बड़ी तो है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को डगमगाने में काफी है।ऐसी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता जिसमें देश के सबसे बड़े बैंक का पतन हो जाएं। मैं ही क्या देश का कोई भी नागरिक नहीं चाहेगा कि एसबीआई न डूबे। इसलिए बैंक के आला नीति निर्धारकों और वित्त मंत्री से उम्मीद करूंगा कि वो समय रहते आवश्यक कदम उठाएं और देश के नागरिकों के बैंकिंग विश्वास को ठेस पहुचने या टूटने से बचाया जा सके ......इंक़लाब जिंदाबाद।

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