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Monday 11 June 2018

हनुमान बेनीवाल : एक सवाल!

-डॉ. नीरज मील
“तिजारत की राजनीति में ऐसा अक्सर होता आया है
हसरतों की आंधी में कौन बिना उड़े रह पाया है।
कोलाहल भरे इस भंवर में कोई क्यों ‘नि:शब्द’ रहे
बंद आँखों से कब कौन किसी को तौल पाया है।।”


किसान हुँकार रैली नाम तो सुना ही होगा। मेरी ये चार लाइने इस हुंकार रैली पर सटीक बैठती हैं। सीकर में विधायक हनुमान बेनिवाल की हुँकार रैली में उमड़े प्रदेश भर से लाखों लोग, किसानों व जवानों से कोंग्रेस-भाजपा के गठजोड़ को तोड़ने का आह्वान, राज्य में तीसरे मोर्चे के गठन की कही बात और बिना किसी उम्मीद, बिना किसी विजन या भविष्य के ताने बाने के रैली का समापन हर किसी के दिमाग में कई सवाल पैदा कर रहा है। सवाल पैदा होना जायज भी हैं। हो भी क्यों न क्योंकि इस रैली में न युवाओं के सपनों के पंख लगे और न किसानों के लिए खेती में सहूलियत या उपज के मूल्य निर्धारण को लेकर कोई बात हुई है। लेकिन फिर भी सीकर के जिला स्टेडियम में रविवार को विधायक हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में आयोजित हुई किसान हुँकार महारैली में प्रदेश भर से लाखों लोग खुद के संसाधनों से उमड़े जिसमें किसानों की सम्पूर्ण कर्जमाफी, टोल मुक्त राजस्थान,  कृषि हेतु मुफ्त बिजलीं सहित दर्जनों जनहित के मुद्दों की मांग उठी !
नागौर के खींवसर से निर्दलिय विधायक हनुमान बेनीवाल मंच के माध्यम से उद्बोधन में कहा कि शेखावाटी वीरों व जवानों की जमीन है, बेशक इसमें कोई शक नहीं है लेकिन क्या इन वीर जवानों के शहीद हो जाने के बाद इसके परिवार को सरकारें कितना संबल देती हैं न इसका ज़िक्र हुआ और न ही इस संबलता को मजबूत करने का कोई विजन सामने आया। आखिर क्यों हनुमान बेनीवाल इस मुद्दे से दूर रहे?  उन्होंने कहा कि प्रदेश भर से उमड़े जवानों व किसानो के सैलाब ने यह साबित कर दिया कि राजस्थान परिवर्तन के मुंड में है, ऐसे में ये सवाल उठाना भी जरुरी है कि फिर आपने क्यों किसानों को उनकी उपज के मूल्य-निर्धारण का हक़ दिलाने का संकल्प नहीं लिया? ऐसे में  उनके द्वारा अपने संबोधन की शुरुआत लोक देवताओ की जयकारों से की जो वहां मंच पर उपस्थित ब्राहम्ण, दलित, मुस्लिम सहित विभिन्न समाजों के लोगों को खुश करने वाला ही सिद्ध हुआ। यह सही है कि किसानों को संघठित होने की जरूरत है। बेनिवाल ने कहा कि रहबरे-आजम सर दीनबंधु छोटूराम की राह पर चलना होगा तभी संघठित होने के सार्थक परिणाम मिलेंगे! लेकिन ऐसे में फिर एक सवाल उठता है कि “आखिर कैसे और आप इस सम्बन्ध में क्या कर रहे हैं? इस बिंदु को लेकर भी चुप्पी रही।
विधायक ने वसुंधरा सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि “व्यापारियों को ऊंट, घोड़ो पर बैठाकर रिसर्जेंट राजस्थान के आयोजन से प्रदेश रिसर्जेंट नही होगा, राज्य को रिसर्जेंट करना है तो एक बार किसानो की सम्पूर्ण कर्जमाफी आवश्यक है।” यह सौ टका सही है लेकिन क्या एक बार की गयी सम्पूर्ण कर्ज माफ़ी से किसानों की हर साल होने वाली बर्बादी रुक जायेगी? उन्होंने चौधरी देवीलाल का उदाहरण देते हुए कहा उन्होंने एक ही आदेश से किसानों की कर्जमाफी की,  मगर सरकार ने 50 हजार की कर्जमाफी में भी किसानों के साथ धोखा कर दिया और उसमे में भी इतनी शर्ते डाल दी कि इसका फायदा अधिकतर किसानों को नही मिलेगा। वास्तव में देखा जाए तो वसुंधरा सरकार ने सिर्फ 50 हज़ार की कर्जमाफी में इतने सारे बैरियर खड़े करना किसानों से धोखेबाजी ही मानी जायेगी।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रदेश में परिवर्तन का जिम्मा युवाओ पर। जैसा विधायक ने कहा कि “प्रदेश में परिवर्तन का जिम्मा अब युवाओं के कंधों पर है और युवाओं की लहर जिस तरफ चलती है उसी की सरकार बनेगी।” लेकिन सबसे बड़ा सवाल फिर से निरूतर रह गया है। सवाल ये है कि आखिर युवाओं की कब सुनी जायेगी? नौकरियों नहीं दी जा रही हैं और ऐसे में केंद्र सरकार जनवरी में 5 साल से ज्यादा खाली पदों को समाप्त कर दिया हैं। इसी तर्ज पर राज्य में भी सरकारी भर्तियों को जैसे सांप सूंघ गया है। लेकिन फिर भी युवाओं के अथक प्रयासों से जमा हुई भीड़ ने आयोजन को तो सफल बना दिया था लेकिन अगुवाई नेता द्वारा इस मुद्दे को कोई ठोस तवज्जों न देना युवाओं के हितों और उनके द्वारा किसान हुँकार रैली में की गयी मेहनत पर कुठाराघात ही सिद्ध होगा। वास्तव में किसान और युवाओं के मुद्दों पर इस नेता की ऐसी बेरुखी न केवल मुझे बल्कि इस आयोजन में लगे कई युवाओं को भी नागवार गुजरी है। खींवसर विधायक ने जैसे ही कहा कि युवाओं को भगत सिंह , तात्या टोंपे की भूमिका में आके हुँकार भरनी पड़ेगी तभी युवा झुम उठे जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि युवाओं में आज़ादी की लड़ाई में शहीद क्रांतिकारियों की शहादत का असर अभी कम नहीं हुआ है। वास्तव में ये युवाओं की शक्ति ही है जो बेहतरी की उम्मीद में बिना कोई सवाल किये ही इस तरह की रैलियों को सफल बनाते हैं।
देश की राजनीति अपने पतन की ओर अग्रसर है तभी नेताओं द्वारा जातीय जहर घोला जा रहा है।  ऐसे में खींवसर विधायक द्वारा राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर अलग-अलग जातियों में खुद की रिश्तेदारी बताकर जातिवाद का जहर घोले जाने का सिर्फ आरोप लगाना केवल स्वयं की राजनैतिक महत्वकांक्षा को ही उजागर करता है। बात तो तब बनती जब विधायक हनुमान बेनीवाल खुद राजनीती को जाति से दूर रखने का कोई विचार प्रस्तुत करते लेकिन अफ़सोस ऐसा भी नहीं हो पाया। बिडम्बना ही रही कि जातिगत आधार पर रैली के दौरान खूब वाही- वाही लूटने का प्रयास किया। इसी के चलते कभी पार्टियों की गुलामी से उठने की बात हुई तो किसान, दलित व गरीब की बात तो कभी दुर्भाग्य से पार्टियों के बंधन में बैठे समाज के नेताओं को समाज के हितों को अनदेखा करने को लेकर कोसा गया।
रैली के दौरान ये भी कहा जाना कि भ्रष्ट मंत्रियों और विधायकों का बेख़ौफ़ घूमना इस बात का पुख्ता सबूत है कि दोनों सरकारों में लोकायुक्त ने भ्र्ष्टाचार में लिप्त मंत्रियों व अधिकारियों ने सरकारों को मुकदमे दर्ज करने के आदेश दिए मगर वसुंधरा ने गहलोत के तो गहलोत ने वसुंधरा के काले कारनामो को ढका। तीसरे मोर्चे की सरकार बनी तो दोनो पार्टियों के भ्रष्टाचार की जांच करवाएंगे। इसके अतिरिक्त विधायक की यह व्यंग्यात्मक स्वीकरोति  कि “किरोङी लाल मीणा कोई बुरा आदमी नहीं है! CBI का मामला था कोई, गिरफ्तारी तक की तैयारी हो चुकी थी, सो..” राजनीती की बहुत कुछ तस्वीर बयां करती है।
     बहरहाल, सभा की खास बात जयपुर कूच और तीसरे मोर्च की तस्वीर फिर से अधूरी छोडने के साथ-साथ किसान और युवाओं को खाली हाथ रखना रही। नागौर, बाड़मेर और बीकानेर के बाद सीकर की अपनी अंतिम हुंकार रैली में भी बेनीवाल ने जेएमएम मोर्चे की घोषणा तो जयपूर कूच के दौरान करने की बात कही, लेकिन जयपुर आंदोलन की कोई तिथि या कार्यक्रम साफ नहीं किया। किसान हुंकार रैली 2018 का राजनीतिक लाभ किसे और कितना मिलेगा ये तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इस आंदोलन को सत्ता परिवर्तन या  व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन भी करार दिया जाना भी बेमानी होगा। ऐसे में युवाओं और समाज के प्रत्येक तबके को ये समझना होगा कि उसे सवाल करना आना ही चाहिए। उसे ये भी देखना होगा कि वो बिना किसी संभावना के झंडे उठाकर न चले इसी में उसकी भलाई है। लोकतंत्र की स्थिति भयावह हो चुकी है और ऐसे में आँख मूंदकर किसी के पीछे चलना एक तरह की उच्च किस्म की गुलामी है जिससे दूर रहना बेहद आवश्यक है। देश हित में जीने और सोचते हुए हमें अपने कर्तव्य के पथ पर बढ़ना होगा तभी देश और हमारे लिए हितकारी है ......

 इंक़लाब जिंदाबाद।  
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