कर्ज माफ़ी, किसान और राजनीति
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नमस्कार, मैं डॉ.
नीरज मील। मुद्दों के सही और सटीक और समुचित निष्पक्षता के साथ विश्लेषण के लिए बने
हुए हैं तह तक
राजनीती की चक्की में पिसिजता देश और किसान। क्या देश की राजनीती में किसान को गुमराह किया जा रहा है? आज के इस एपिसोड में हम इसी मुद्दे को विश्लेषित करेंगे और ये जानने का प्रयास करेंगे कि आखिर राजनीति में किसान को फ़ुटबोल बनाकर कबतक राजनीती चलती रहेगी?
किसानों की कर्ज माफी
दिसबंर 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए
विधानसभा चुनावों में कोंग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव के
दौरान किसानों की कर्ज माफी का वादा किया था। आप भी सुनिए वो बयान जिससे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे कांग्रेस
की प्रो-फार्मर छवि के रूप में पेश किया।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार भी बनी। कांग्रेस ने इन तीनों
राज्यों में वादे के मुताबिक तीनों राज्यों की कांग्रेस सरकारों ने सरकार बनाते ही
पहले काम के रूप में किसानों के कर्ज माफी की घोषणा की। आप भी देखे लेकिन राजस्थान
के मुख्यमंत्री नहीं मिलेंगे!
हालांकि ये अलग बात है कि कर्ज किसका
माफ़ हुआ और कितना हुआ? खैर, कोंग्रेस की जीत को देखते हुए सभी ये लगने लगा है कि
किसान ही वह बर्ग है जो जल्दी झांसे में आ सकता है। इसी के चलते किसानों की कर्ज
माफी एक बार फिर से चर्चा में तब आई और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार 80 लोकसभा
सीटों की तादाद देखते हुए कर्जमाफी का बड़ा दांव खेलने की तैयारी में है ऐसी खबरे
मिडिया में चर्चा का विषय बनी हुई हैं
जी हाँ, 2019 के लोकसभा चुनावों से
पहले उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक बड़ा फैसला ले सकती है। यहाँ हम बता
दें कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी सरकार ने किसानों का कर्ज
माफ करने का वादा किया था। चुनाव जीतने के बाद बीजेपी सरकार ने किसानों का कर्ज
माफ भी किया था। अब किसका कितना क़र्ज़ माफ़ हुआ ये शोध का विषय जरुर है!
अब बात आती है कि आखिर देश में
राजनीति किस ओर जा रही है और क्यों जा रही है? किसान कर्जमाफी से सशक्त हो सकेगा?
क्या क़र्ज़माफ़ी ही एकमात्र जरिया हैं किसान सशक्तिकरण का? न जाने ऐसे कितने सवाल हैं
जो हमेशा निरुत्तर ही रहेंगे एवं जिस तरह से किसान की ऋण माफ़ी का नाम लेकर सरकारे
बन रही है उससे तो यही लगता है कि कर्जमाफी केवल एक ढकोसला ही साबित हुआ अब तक और
केवल राजनीती के अलावा और कुछ नहीं है।अगर किसान को सशक्त करना है तो उसे उसकी
मूल्य निर्धारण का स्वतंत्र हक देना ही होगा अन्यथा क़र्ज़माफ़ी तो मात्र जनता को
गुमराह कर किसान और देश को लूटने का एक साधन मात्र है और कुछ नहीं।
इस एपिसोड में
इतना ही मिलते हैं एक नए मुद्दे की तह तक जाने के लिए। मुद्दों के सही सटीक और
समुचित विश्लेषण के लिए आप बने रहे डॉ। नीरज मील के साथ तह तक चैनल के साथ क्योंकि
हम पहुचेंगे प्रत्येक मुद्दे की तह तक। फिलहाल अपने दोस्त डॉ। नीरज मील को दीजिए
इजाजत शुक्रिया।
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