वंशवाद,परिवारवाद का काला सच
आखिर राजनीति में आ ही गई प्रियंका वाड्रा। इस आलेख में हम लोकतंत्र की उस सच तक पहुंचने का प्रयास करेंगे जहां तक पहुंच पाना अक्सर असंभव होता है। देश की ईमानदार मीडिया में पिछले 2-3 दिनों से एक हवा चल रही है कि आखिर कॉन्ग्रेस ने चल ही दिया प्रियंका कार्ड। इस आलेख में हम प्रियंका वाड्रा जो कि राहुल गांधी की बहन है कि कॉन्ग्रेस में आने की चर्चाओं के बहाने मंथन करेंगे परिवारवाद या वंशवाद की सच्चाई पर और इसके माध्यम से बहुत कुछ न केवल समझने का प्रयास करेंगे बल्कि स्वतंत्र लोकतंत्र में धोखे की तह तक जाने का प्रयास भी करेंगे लेकिन सबसे पहले सुनते हैं प्रियंका की राजनीति में लाने पास राहुल गांधी सहित कई बड़े लोगों की प्रतिक्रियाएं, आप भी गौर से सुनना इस विडियो में। तो आपने सुना कि लोग किस कदर चापलूसी या बातें बनाना जानते हैं राजनीति के बहाने। भाजपा वाले हमेशा से ही कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहे हैं और वंशवाद को लेकर घनघोर हमले भी करते रहें लेकिन कॉन्ग्रेस पर इसका कोई असर हुआ या नहीं इसके मुझे जानकारी नहीं है।
प्रियंका गांधी
माफी चाहूंगा प्रियंका वाड्रा कांग्रेस के महासचिव के पद पर आहूत कर दी गई है ऐसे
में सबसे बड़ा सवाल है कि कांग्रेस में लोकतंत्र है या नहीं क्योंकि जब किसी दल के
पदाधिकारी नियुक्ति पद्धति चयन न होकर मनोनयन हो तो उस दाल में लोकतंत्र होने की
बात करना भी सरासर बेमानी ही होती है। अब बात लोकतांत्रिक दल कि हो रही है तो
बीजेपी में अमित शाह भी राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनयन से ही बने हैं इसी तरह कोंग्रेस
के राहुल गांधी और सपा, बसपा और एक लंबी फेहरिस्त है राजनीतिक दलों के नाम की जो
लोकतंत्र के नाम पर इसी तरह चयन से नहीं बल्कि मनोनयन से ही अपने पदाधिकारियों की
नियुक्ति करते हैं और लोकतंत्र के नाम पर अपने आम कार्यकर्ताओं के साथ धोखा ही
करते हैं। इसे में सवाल पूछना और उठाना दोनों लाजमी है कि जब आंतरिक
स्तर पर इन दलों में बेईमानी है तो यह पार्टियां देशहित के काम के साथ वफादार कैसे
हो सकती है? देश में लगभग सभी पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष ही नहीं बल्कि जिलाध्यक्षों
तक का निर्धारण चयन प्रक्रिया से न होकर मनोनयन की ही प्रक्रिया अपनाई जाती है। यहां यह कहना लाज़मी होगा कि देश की राजनीति में परिवारवाद न केवल एक
समस्या है बल्कि एक गंभीर चुनौती है। देश के तमाम दल जिसमे bjp भी शामिल है में टॉप से लेकर बोटम तक कमोबेश कई प्रकार के परिवारवाद है अब किस तरह के परिवारवाद है मैं
ज्यादा विस्तृत नहीं कहना चाहूंगा लेकिन परिवारवाद है चाहे वो सिंधिया परिवार हो,
चाहे गांधी परिवार हो, चाहे वो यादव परिवार हो, चाहे वो कोई और परिवार हो लेकिन
परिवार है।
इसे परिवारवाद
कहे या वंशवाद जो भी लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि इस पूरी मनोनयन की
प्रक्रिया से प्रत्येक स्तर पर न जाने कितनी प्रतिभाओं का गला घोटा गया और आगे भी जाता रहेगा? क्या
आपने लोकतंत्र में जनता जनार्दन मानने से पहले राहुल गांधी, वसुंधरा राजे, सोनिया
गांधी आदि किस और किन वजहों से राज कर रहे हैं सवाल किया है? खैर परिवारवाद या
वंशवाद के बचाव में कई राजनीतिक चापलूस बचकाने तर्क भी देते हुए मिल ही जायेंगे
लेकिन कॉन्ग्रेस या बीजेपी के कार्यकर्ता
बता दे कि पार्टी के कितने आम कार्यकर्ताओं ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का कमरा
देखा है ? कुछ लोग आपको कोंग्रेस के संदर्भ में ये कहते हुए भी नज़र आयेंगे कि
गांधी परिवार ने देश के लिए काफी बलिदान दिया है इसलिए गांधी परिवार का हक है
पार्टी की पदाधिकारी बनने का। तो फिर शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद,
बिस्मिल जैसे आजादी के दीवानों के परिवार वालों को अंदर क्यों नहीं आने दिया गया या
आगे नहीं बढ़ाया? क्या उनका बलिदान राजीव। इंदिरा के बलिदान से कम था? यह तो
कॉन्ग्रेस वाले ही बता सकते हैं। परिवारवाद
या वंशवाद की हिस्ट्री बहुत अधिक लंबी और विस्तृत है इसे समेट पाना न तो ऐसा लेकिन
संभव है वो नहीं इस आलेख का लक्ष्य है। कई कांग्रेसी यह तर्क भी देते हैं कि 32 साल से गांधी परिवार ने देश में कोई मंत्री नहीं बना यह बात
सही है लेकिन पूरी तरह से नहीं खुद सोचिए पार्टी अध्यक्ष होकर सरकार को पार्टी का
केंद्र बिंदु बना लिया जाए तो क्या प्रधानमंत्री से ऊपर का नहीं होता पार्टीअध्यक्ष?
क्या उसे कोई मंत्री बनने की आवश्यकता फिर विशेष रह जाती है?
परिवारवाद या
वंशवाद को बढ़ाने कीप्रक्रिया यूँ ही बदस्तूर जारी रहेगी क्योंकि मुझे आज यह समझ
में आया कि हमें किताबों में क्यों राज और राजा और उसके बेटे ही को राजा बनने की
कहानियां सुनाई गई और सुनाई जा रही रही हैं! ताकि हम सवाल न करें और चुपचाप सहन कर
ले अपने आप को उसी के अनुरुप ढाल ले बस इसीलिए। यहां सबसे अहम सवाल है कि अभी
वंशवाद को ख़त्म करने के लिए कुछ हो रहा है या नहीं तो आश्वस्त हो जाएं कि न कुछ
होने वाला है और न हुआ है। इसका उत्तर शायद ही आपको कहीं मिले और मिले तो मुझे जरूर
बताइएगा। वैसे प्रियंका वाड्रा को गांधी
बनाकर कोंग्रेस का महासचिव बना देने से ज्यादा बेहतर और क्या जवाब हो सकता है
इसका?
वैसे देश को किससे और किस तरह से बच आएंगी
प्रियंका वाड्रा? यह तो रेणुका चौधरी ही बता सकती हैं। क्या प्रियंका वाड्रा जिनको
प्रियंका गांधी बनाकर पेश किया जा रहा है कि वे चुनावों में वोट बटोरने कि कोई
डिग्री लेकर आई हैं या विशेषज्ञ हैं! सब
बातों की एक ही बात है कि राजनीती में तो वंशवाद और परिवार ही चलेगा। प्रियंका वाड्रा
का महासचिव बनना भी वंशवाद या परिवारवाद की प्रक्रिया का हिस्सा ही है और कुछ नहीं।
कुछ लोग कहेंगे कि ये फैसला देश कि जनता
आने वाले वक्त में करेगी तो मैं बता दूं कि जब चुनाव के सारे विकल्प ही वंशवाद और
परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले हों तो चुनाव से बदलाव कतई संभव नहीं हो सकता।
फिलहाल के लिए इतना ही मिलते हैं एक और मुद्दे की तह तक जाने के लिए आप बने रहे डॉ।
नीरज मील के साथ।
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