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Monday 11 February 2019

क्या अरुणाचल प्रदेश इंडिया के हाथों से फिसल रहा है?

            


आखिर चीन अरुणाचल प्रदेश को विवादित कह कर क्या हासिल करना चाहता है? इस आलेख में हम इसी बिंदु पर चर्चा करेंगे। हाल ही में चीन ने शनिवार को इंडिया के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल प्रदेश दौरे को लेकर आपत्ति जताई है और कहा है कि यह विवादित इलाका है किसी भी तरह की गतिविधि से सरहद के सवाल जटिल हो सकते हैं। यहां तक चीन ने दुस्साहस की प्रकाष्ठता को ताक पर रखते हुए इंडिया के नेतृत्व को प्रदेश में किसी भी गतिविधि से दूर रहने की सलाह तक दे डाली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश दौरे के दौरान साफ कर दिया कि इंडिया लगातार हाईवेज,रेलवेज और हवाई मार्गों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और अरुणाचल प्रदेश के मामले में वह किसी भी चाहिए पक्षकार की दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं करेगा। अरुणाचल प्रदेश देश का अभिन्न हिस्सा है और इस हिस्से के लिए वह लगातार प्रयास विकास की करते रहेगा। लेकिन चीन ने इस पर आपत्ति दर्ज करवाई जिसका इंडिया ने विरोध भी कर दिया।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हूं चर्निंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल दौरे से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि " "चीन और इंडिया के सीमा विवाद में चीन का रुख पहले की तरह ही है। इसमें फिलहाल कोई बदला नहीं आया है। चीन की सरकार ने अरुणाचल प्रदेश को कभी भी मानयता नहीं दी है। इंडियन नेताओं के अरुणाचल प्रदेश दौरे का चीन विरोध करता है।"

वर्तमान स्थिति

चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताता है हालांकि अरुणाचल प्रदेश को सम्माहित करते हुए इंडिया की संप्रभुता को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली हुई है। लेकिन चीन अंतरराष्ट्रीय मान चित्र और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता के विरुद्ध जाकर इसे भारत का हिस्सा नहीं मानता है। अंतरराष्ट्रीय मान चित्रों में भी अरुणाचल प्रदेश इंडिया का ही हिस्सा है बावजूद इसके चीन भारत और चीन के बीच में मैक मोहन अंतर्राष्ट्रीय सीमा को भी मानने से इंकार करता है।

विवाद

शुरू में अरुणाचल प्रदेश के उत्तरी हिस्से तवांग को लेकर चीन दावा करता था जहां विशाल बौद्ध मंदिर है। लेकिन तब तिब्बत भी चीन की दादागिरी से परेशान था कमजोर था भले ही वह स्वतंत्र था और इंडिया की ओर आशातीत नजरों से देखता था लेकिन इंडिया की सरकार की लगातार अनदेखी के चलते 1950 के दशक के आखिर में चीन ने तिब्बत को अपने में मिला लिया। साथ ही अक्साई चीन के रूप में करीब 38000 किलोमीटर इलाकों जो भारत के थे जिसमें लद्दाख का कुछ हिस्सा भी है चीन ने कब्जा कर लिया जिस पर नेशनल हाईवे 219 बना लिया है, को चीन का हिस्सा ही मानता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर के नियमों के आधार पर भी और भारत के नजरिए से भी यह अवैध है।

हकीकत
 1912 तक तिब्बत और इंडिया के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं थी।लेकिन राष्ट्र राज्य की अवधारणा आने के बाद 1914 में शिमला में तिब्बत चीन और ब्रिटिश इंडिया के प्रतिनिधियों की बैठक हुई और सीमांकन तय हुआ। 1935 के बाद यह सीमांकन का पूरा इलाका इंडिया के मानचित्र पर आ गया। मजे की बात यह है कि 1962 की युद्ध में जीत के बाद भी तिब्बत को चीन में मिलाने के बाद भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति इंडिया के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत कर सका, इसलिए चीन ने चुप रहना मुनासिब समझा।

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