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Wednesday 12 December 2018

राजस्थान में सत्ता परिवर्तन के मायने।

डॉ. नीरज मील 'निःशब्द'


       चुनाव के नतीज़े आते ही हार या जीत के मायने, कारण और समीक्षाएं शुरू हो जाती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है उन मुख्य कारकों को खोजना है, जिनके कारण हार होती है।  हार या जीत एक सिक्के के दो पहलू होते हैं लेकिन इन दो पहलुओं में से जीत राजनीति में कोई मायने नहीं रखती लेकिन हार निश्चित ही राजनीति में मदहोशी के साथ तय होती है। राजस्थान की राजनीति का विश्लेषण किया जाए तो भी सामने यही आता है कि मदहोशी में सरकार द्वारा ऐसे कदम उठाए हैं, ऐसे वक्तव्य भी दिए हैं, और ऐसे कृत्य भी किए हैं जिनके फलस्वरूप प्रदेश की जनता में सरकार के प्रति नफरत का भाव पैदा हुआ जिसे एंटी इनकंबेंसी लहर कहा जाता है। इसी के चलते सत्ता परिवर्तित हो जाती है। चुनावों में सरकार बनने से पहले राजनीतिक दल या पार्टी जो वायदे करती है उन वायदों पर अगर खरी नहीं उतरती है तो भी जनता उसे बदल देती है।जनता के साथ साथ समय का बदलाव भी मुख्य घटक साबित होता है। इस कारण भी राजस्थान में लगातार सरकार का अदला-बदली होना दिखाई देता है।
         आज के इस आलेख में मैं डॉ. नीरज मील पाँच बड़ें बिंदुओं पर विशेष चर्चा करूंगा जिनकी वजह से राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा के नेतृत्व वाली सरकार जनता द्वारा बदली जा चुकी है। 7 दिसंबर को हुए मतदान में जनता ने अपार खीझ दिखाते हुए यह बतला दिया कि अगर सरकार काम नहीं करेगी तो जनता सरकार बदल देगी। भले ही उसे आने वाली सरकार से फिर मुंह की खानी पड़े लेकिन वह अपने इस बदलाव की विचारधारा को दामन नहीं छोड़ेगी उसे अपनाये ही रखेगी। हार का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है हारने वाली राजनीतिक पार्टी पर। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि उससे भी कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है जनता पर। जनता अपनी अपेक्षाओं के लिए, जरूरतों के लिए, अपनी अपेक्षाओं के अनुरूप विकास के लिए सरकार चुनती है। लेकिन जब यही सरकारें उसका भरोसा तोड़ देती हैं, उसे अंधेरे के उस तल घर में छोड़ देती है जिससे उसको न केवल नुकसान होता है बल्कि उसकी भविष्य की योजनाओं सहित उसके संपूर्ण भविष्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जनता के लिए एक नई शुरुआत होती है। इसीलिए सत्ता परिवर्तन की तह तक जाना जरूरी हो जाता है।
          प्रभावशीलता के क्रम में अगर बिंदुओं पर परिचर्चा करें तो सबसे पहला बिंदु आता है धर्म और वर्ग को लेकर।राजनीति में प्रत्येक राजनीतिक पार्टी कमोबेश इस घातक घटक को जरूर काम मे लेने का प्रयास जरूर करती है लेकिन वह इससे सामाजिक ताने-बाने पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के प्रति उदासीन हो जाती है। इनस तरह अगर कोई राजनीतिक पार्टी अपने एजेंडे में इसको शामिल करती है तो यह निश्चित ही दीर्घकाल के लिए जनता व देश के लिए एवम अल्पकाल में उस पार्टी के स्वयं लिए घातक सिद्ध होता है। राजस्थान की राजनीति में भी यही हुआ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अपने प्रचार के दौरान विभिन्न प्रकार के ऐसे वक्तव्य दिए जिनके कारण पार्टी को चर्चा में बने रहने का अवसर तो जरूर मिला लेकिन इन वक्तव्य से मुख्य वर्गों को, समुदायों के साथ अन्य समुदायों को अप्रत्यक्ष रूप से चिढ़ाने के काम भी आए।
राजस्थान में बहुत सारी सीटें जैसे टोंक में सचिन पायलट वर्सेस यूनुस खान, सीकर के फतेहपुर में सुनीता जाखड़ बनाम हाकम अली,जैसे कई उदाहरण भरे पड़े हैं, जिनको लेकर यह राजनीति की गई। इन सीटों पर राजनीति में ऊपरी दिखावा यह रहा कि भारतीय जनता पार्टी हिंदू कार्ड को लेकर आगे बढ़ी जबकि कांग्रेस इस पर तटस्थ नहीं रही जिससे उसने एक बहुत बड़े वर्ग को अपने पक्ष में करते हुए जीत हासिल की। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने हिन्दू कार्ड में कबिलाई जातियों के प्रति अपना परम्परागत द्वेष का भाव भी नहीं छोड़ा। देश के मूल व प्रदेश के मुख्य निवासी जाट, अहीर आदि कबीलाई जातियों को भारतीय जनता पार्टी ने अनेकों सीटों पर नाराज करते हुए ब्राह्मण वाद को बढ़ावा भी दिया। उसी की बदौलत भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई। इसी कारण अनेकों स्तरों पर स्थिति ऐसी रही कि भारतीय जनता पार्टी एक ब्राह्मण-बणियों की पार्टी साबित हुई तो कहीं पर यह कबीलाई जातियों के खिलाफ साबित हुई। परिणाम राजस्थान में हार का नतीजा सामने आया क्योंकि कबीलाई जातियों का वोटिंग हिस्सा आज भी 80 फ़ीसदी से अधिक है।
             दूसरा कारण रहा सरकारी तंत्र में सरकार द्वारा घोषित शोषण। संविदा के नाम पर युवा और अनेकों वर्ग के लोगों को अल्प मानदेय पर नौकरी करवाना व सरकार द्वारा उनका खून चूसा जाना सरकार के लिए भारी पड़ गया। भारतीय जनता पार्टी ने गहलोत सरकार के समय निकाली गई भर्तियां जो संविदा कर्मियों को स्थाई नौकरी की ओर ले जाने की मार्ग प्रशस्त कर रही थी उन को निरस्त करते हुए उन के संदर्भ में किसी प्रकार की कोई दिलचस्पी नहीं दिखाना, उन्हें दिए गए अल्प मानदेय में से भी और कटौती कर अति अल्प वेतन पर कार्य करने को मजबूर करना और सामाजिक सुरक्षा के नाम पर उन्हें किसी प्रकार की कोई सहूलियत नहीं देना इत्यादि कई कारण रहे और कई कार्य भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने किए जिनकी बदौलत प्रदेश भर में दो लाख से अधिक संविदा कार्मिक नाराज हुए। दो लाख से अधिक संविदा कार्मिक अपने-अपने परिवारों को लेकर कांग्रेस के प्रति दिलचस्पी दिखाने लगे और यह नाराजगी 5 साल में इतनी बढ़ गई कि भारतीय जनता पार्टी को ले डूबने के लिए काफी साबित हुई।
            तीसरा और अहम कारण रहा शिक्षा व रोजगार। शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा सरकार ने कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिसकी बदौलत यह देखा जा सके और यह तय किया जा सके कि सरकार ने वास्तव में अपने कार्यकाल में कोई अद्वितीय और अनुकरणीय कार्य किया है या प्रशंसनीय कार्य किया है। जितनी नई सरकारी कॉलेज खोली गई उन कॉलेजों में शिक्षक नहीं है। उपलब्ध स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर इतना कमजोर रहा कि आमजन के लिए शिक्षा के प्रति रोष व्याप्त हो गया। इसी की बदौलत शिक्षा निजी क्षेत्र की ओर लुढ़कती चली गई । एक आम आदमी के लिए एक मध्यम स्तर की शिक्षा प्राप्त करना दुश्वार साबित हुआ। प्रदेश बहुत बड़ा वर्ग है युवा और सबसे ज्यादा वादाखिलाफी भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा के नेतृत्व वाली सरकार ने इसी वर्ग के साथ की। 15 लाख की सरकारी नौकरियों का वादा कर सत्ता में आई पार्टी ने इसे ही ठेंगा दिखा दिया।इसी के चलते जनता में एंटी इनकंबेंसी की लहर पैदा हुई और यह लहर भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा सरकार को डुबाने में सहायक सिद्ध हुई।
            चौथा और मूल कारण किसानों व किसानियत के प्रति सरकार की उदासीनता साबित हुई। किसानों को पचास हज़ार की लोन माफी उस वक्त दी गई जिस वक्त किसान अपने मूल कार्य को छोड़कर सड़कों पर आ गए।  इन 5 सालों में किसानों के पास में कोई नेतृत्व नहीं था। ना कोई उचित रूप से गुजारे का कोई जरिया था। न किसान के पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कोई रास्ता था। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी बनती थी कि वह किसानों के लिए एक ऐसे रास्ते तैयार करें जो उनके अस्तित्व को बचा सके लेकिन वसुंधरा की सरकार ने अपने 5 साल के कार्यकाल में किसानों की एक न सुनी। एक भी कार्य ऐसा नहीं हुआ जो किसानों के अस्तित्व को बचाने के लिए किया गया। चाहे वह डार्क जोन में सिंचाई के पानी की व्यवस्था करने को लेकर नहर लाने की बात हो या फिर उत्तम किस्म के बीज व खाद का, ऑर्गेनिक खेती की बात हो या सहूलियत भरी खेती या कृषि उपकरणों के सुगमता की बात । प्रत्येक स्तर पर भारतीय जनता पार्टी की वसुंधरा सरकार असफल ही साबित हुई । किसान न केवल प्रदेश की जनता का पेट भरते हैं बल्कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी अपने रक्त से सींचते हैं व राजनीति में भी अपना अमूल्य योगदान देते हैं। बावजूद इसके यह वर्ग इतना असंतुष्ट हुआ कि इनकी यह असंतुष्टि राज बदलने की कहावत को चरितार्थ कर बैठी।
             पांचवें और अंतिम कारण में कई कारणों का समावेश होता है और इन कारणों में लचर प्रशासन व्यवस्था, अंधेरी नगरी चौपट राजा जैसी व्यवस्था, युवाओं को खेल के नाम पर अपने झांसे में लाने और राज में आने की कवायद के साथ साथ बेरोजगारों को जमकर लूटने का एक सरकारी परितंत्र बनाने की योजना जैसे तमाम मुद्दे उभरकर सामने आए। प्रदेश की जनता के द्वारा 5 साल में सरकार द्वारा एक भी कार्य इन असंतोष वाले वर्गों के प्रति नहीं करने के कारण जनता की ऐसी सरकार को खत्म करने की ठान और लक्ष्यबद्ध योजना सरकार के लिए भारी पड़ी और सरकार को ले डूबी।
             निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि सरकार चाहे कोई भी हो कांग्रेस की हो,भारतीय जनता पार्टी की हो या किसी अन्य पार्टी या दल की । अगर वह जनता के प्रति ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करती है और केवल सत्ता के मद में चूर होकर अपने आप को सर्वोपरि मान बैठती है तो ऐसे में उस सरकार का डूबना स्वयं के द्वारा ही तय हो जाता है। यही राजस्थान, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि में हुआ। एक समय था जब लोग किसी दल के साथ जुड़ जाते थे लेकिन अब यही जनता सिर्फ अपने विकास के लिए सवाल करती है। यह लोकतंत्र के लिए बेहतर संकेत हैं। जनता जवाबदेही चाहती हैं और जब कोई सरकार इस प्रकार से जवाबदेही में असफल होती है तो उस सरकार का बदलना इस जनता के द्वारा तय हो जाता है । उम्मीद करते हैं कि आने वाली सरकारें जनता के मुद्दों को नहीं भूलेंगी।इन मुद्दों के लिए कार्य करेगी और प्रदेश हित में, जनता के हित में फैसले लेंगी न कि थाईयों के हित में। जनता ने दिखा दिया कि अब अगर फिर से ऐसा हुआ तो फिर परिणाम बदलाव से नहीं बल्कि भयंकर परिवर्तन के लिए होंगे। इंकलाब जिंदाबाद।

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