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Wednesday 1 April 2020

ये है मरकज़ मुद्दें के पीछे की हकीकत This is the reality behind the markaz issue.

                                      डॉ. नीरज मील

दिल्ली का निज़ामुद्दीन कोरोना संक्रमण को लेकर सुर्ख़ियों में आ गया है.  आइये चलते हैं इसी सुर्खी की तहतक. फिलहाल वक्त है निजामुद्दीन की मुस्लिम संस्था को लेकर उठ रहे सवालों के विश्लेष्ण का. निज़ामुद्दीन में तबलीग़ी जमात का केंद्र कैसे बना 'हॉटस्पॉट' इस बात का जवाब तो तक़रीबन सभी को मिल चूका होगा लेकिन इस एपिसोड में हम प्रयास करेंगे ये देखेने का कि –
1.       क्या वाकई संस्था की गलती थी या फिर प्रशासन की?
2.       क्या दिल्ली सरकार की नाकामी है या फिर ये मुद्दा एक राजनितिक है

             




सबसे पहले हम आपको बता दें कि निज़ामुद्दीन में मुस्लिम संस्था तबलीग़ी जमात का हेडक्वॉर्टर हैं जहां लॉक डाउन के दौरान मार्च के महीने में एक धार्मिक आयोजन आयोजन की बात सामने आ रही है. प्रारम्भिक सुचानाओं में सामने आया कि यह संस्था 19 वी सदी से चल रही है. मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे जफ़र सरेशवाला तबलीग़ी जमात से सालों से जुड़े हैं. उनके मुताबिक़ ये विश्व की सबसे बड़ी मुसलमानों की संस्था है. इसके सेंटर 140 देशों में हैं. फिलहाल जब ये खुलासा हुआ तब
-    इस संस्था में 1700  के करीब लोग मौजूद थे.
-    1 हजार लोगों को तबलीगी से निकाले जाने की बात सामने आ रही है
-    सभी का कोरोना टेस्ट हो गया है
-    24 लोग पोजिटिव बताये जा रहे हैं
-    700 logo को क्वारांटीन में रखा जा रहा बताया जा रहा है
-    335 logo को अस्पताल की निगरानी में रखा जाने की बात है
-    स्वास्थ्य विभाग अभी भी काम पर लगा हुआ बताया जा रहा है

अब देखते हैं कि तबलीग़ी जमात का पक्ष
प्रधान मंत्री के 24 मार्च को लोक डाउन के एलान के बाद कार्यक्रम तुरंत रोक दिया
"लेकिन पूर्ण लॉकडाउन के एलान के पहले भी कुछ राज्यों ने अपनी तरफ से ट्रेन और बस सेवाएं रोक दी थी. इस दौरान जहां के लोग वापस जा सकते थे उनको वापस भेजना का पूरा बंदोबस्त तबलीग़ी जमात प्रबंधन ने किया. इसके तुरंत बाद प्रधानमंत्री ने पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी."जिसकी वजह से कई लोग वापस नहीं जा सके और वो वहीं मरक़ज़ में रह रहे थे. प्रेस रिलीज़ में ऐसे लोगों की तादाद 1000 के क़रीब बताई गई है. ये पूरा मामला पुलिस तक 24 मार्च को पहुंचा जब स्थानीय पुलिस ने मरक़ज़ को बंद करने के लिए नोटिस भेजा।
तबलीग़ी जमात के मुताबिक़ पुलिस के इस नोटिस का उन्होंने उसी दिन जवाब दिया कि आयोजन को रोक दिया गया है और 1500 वापस चले गए हैं. लेकिन तकरीबन 1000 लोग फंसे हैं. इस चिट्ठी के बाद, 26 तारीख को एसडीएम के साथ एक मीटिंग हुई. अगले दिन 6 लोगों को टेस्ट के लिए ले जाया गया.और 30 मार्च यानी सोमवार को पूरा मामला मीडिया में आ गया।

*आयोजकों ने किया घोर अपराध, होगी FIR* लेकिन क्या आयोजको ने ये कार्यक्रम बिना प्रशासन की अनुमति के किया? अगर नहीं तो फिर किसके इशारे पर ढील दी गई? क्या इस बात की जांच भी हो रही है?
-सूचना ये भी है कि निजामुद्दीन स्थित मरकज का भवन अनधिकृत रूप से बनाया गया है। एसडीएमसी standing committee के डिप्टी चेयरमैन राजपाल सिंह ने सेंट्रल जोन के डीसी को पत्र लिखकर बिल्डिंग को सील करने को कहा है। सवाल ये है कि क्या ये रातोंरात अनाधिकृत हो गया? इस बिंदु पर कितना विचार किया गया?
-अधिकारियों की ओर से मिली जानकारी के मुताबिक तमिलनाडु से 510, असम से 281, उत्तर प्रदेश से 156, महाराष्ट्र से 109 और बिहार से 86 लोग इसमें शामिल हुए थे। इसके अलावा पश्चिम बंगाल से 73, तेलंगाना से 55, झारखंडा से 46, उत्तराखंड से 34, हरियाणा से 22, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से 21, राजस्थान से 19, हिमाचल प्रदेश, केरल और ओडिशा से 15-15, पंजाब से 9 और मेघालय से 5 लोग शामिल हुए थे।
जब पूरे देश मे लॉक डाउन हो चुका था तो ये लोग देश के इन हिस्सों में कैसे पहुंचे?
1.गृहमंत्री अमित शाह के मंत्रालय के पास इस बात की भी जानकारी थी कि विदेशों से इतने बड़ी संख्या में नागरिक इकट्ठा होते हैं. तो फिर इस खतरे को देखते हुए तुरंत कार्रवाई करते हुए इनको लॉकडाउन के ऐलान के बाद क्वारंटाइन क्यों नहीं किया गया. जब कोरोनावायरस को लेकर केंद्र सरकार ने डीएम एक्ट के तहत पूरी अपनी कमान अपने हाथ में ले लिया है. वहीं गृहमंत्रालय की ओर से भी बड़े-बड़े दिशा-निर्देश आ रहे हैं तो विदेशियों की आवाजाही और यहां भीड़ की जानकारी होते हुए भी उदासीनता क्यों बरती गई?
2.स्वास्थ्य मंत्रालय भी हर रोज प्रेस कांन्फ्रेंस करके दिन भर की जानकारी देता है. लेकिन क्या उसके अपने स्थानीय स्वास्थ्य कर्मी और अधिकारी पूरी तरह से फेल साबित हुए?
3.क्या स्थानीय विधायक, सांसद और पार्षदों ने भी इस बात को गंभीरता से लिया? जनप्रतिनिधि होने के नाते उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह आम लोगों के बीच इस बीमारी के बारे में जागरुक करें.

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