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Monday 9 July 2018

सरकार की सरकार से लड़ाई

    डॉ. नीरज मील 



            1952 के आम चुनावों के बाद देश की जनता का सीना गर्व से फूल गया। चुनकर आये प्रतिनिधि भी देश सेवा को और विकास की गाथा लिखने के स्वपनों को संजोकर आगे बढ़े होंगें। लेकिन ऐसा किसी ने सोचा होगा कि सरकार ही सरकार से लड़ाई करने का मजबूर हो जायेगी। यह आज का कड़वा और छूपा हुआ सच है कि असामाजिक और देशद्रोहियों ने पहले सिस्टम की मदद से समाज का बर्बाद किया और अब वे सिस्टम को ही अपने शिकंजे में ले चुके हैं। हाल ही में हमारे भारत के पंजाब की प्रदेश सरकार ने अपने साढे़ तीन लाख कार्मिकों की डोप टेस्ट(अर्थात् नशा करते हैं या नहीं की जांच) करवाने जा रही है। अब आप खुद सोचिये कि जो सरकार पुलिस की मदद से नशेडियों और नशे के सौदागरों को पकड़ती है वही पंजाब सरकार आज पुलिस का भी डोप टेस्ट करवा रही है। सरकार द्वारा पुलिस एवं अपने कार्मिकों का डोप टेस्ट करवाने का यह आशय सरकार का कार्मिकों पर से विश्वास उठना कभी नहीं है। इस डोप टेस्ट से यह अभिप्राय भी नहीं है कि पंजाब में सारे कार्मिक नशेड़ी हैं या नशा करते हैं। लेकिन सरकार का यह फैसला यह बताता है कि सरकार खुद सरकार से ही लड़ रही है।
            जब सरकार को सरकार पर ही शक हो जाएं तो सोचने वाली बात है कि ऐसे में नशे ने प्रदेश के समाज पर क्या कोहराम मचा रखा है। आप खुद तय किजिए कि जब पंजाब के रामपुरा में एक कांग्रेसी के बेटे को ही नशा बेचते गिरफ्तार कर रही है तो फिर इसे सरकार की सरकार से लड़ाई कहें तो क्या कहें? बात यहीं नहीं थमती है एसएचओ और मुंशी ने इस लड़के को बाद पचास हजार रूपये लेकर वापस छोड़ दिया। यह लड़का फिर बाज नहीं आया तो लोगों ने प्रदर्षन करना शुरू कर देने के फलस्वरूप सरकार द्वारा जांच की जाती है जिसमंे दोनों पुलिसकर्मियों का गिरफ्तार कर लिया जाता है। यह अकेली घटना  नहीं है कि सरकार को नशे खिलाफ लड़ने में अपने ही कार्मिकों गिरफ्तार करना पड़ रहा है। जहां एक महिला को नशेड़ी बनाने के आरोप में फिरोजपुर से डीएसपी दलजीतसिंह को सस्पेन्ड किया गया है वहीं जालन्धर में भी ड्रग माफिया के हाथों की कठपुतली बने एक इंस्पेक्टर इन्द्रजीतसिंह को भी गिरफ्तार किया गया है। बात यहीं नहीं थमती है गुरूदासपुर के भी दो पुलिस कर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि नशे के इस दलदल से कैसे निकलेगा पंजाब?
            करीब सवा तीन लाख कार्मिकों के डोप टेस्ट का निर्णय कोई साधारण घटना नहीं है। यह अपने आप में कई सवाल लिए हुए तो है ही साथ ही देश के अन्य राज्यों के लिए अलर्ट है। विशेषकर पंजाब की सीमा से लगते सभी राज्यों के लिए तो यह एक अलार्म है। यहां भी एक यक्ष प्रश्न खड़ा होता है कि क्या पंजाब से सटे राज्यों की सरकार इस बुराई के खिलाफ क्या एक्षन ले रहीं है? क्या इन राज्यों में यह स्थिति खराब नहीं है? पंजाब में जहां हर रोज नशीली दवाइयों से औसतन एक व्यक्ति की मौत हो रही है तो इससे सटे या देश के अन्य राज्यों के क्या हाल है? कहना मुश्किल है। आज ड्रग्स के दुरूपयोग की स्थिति खतरनाक है। आप देश के अन्य राज्यों में भी ड्रग्स का दुरूपयोग सार्वजनिक शौचालयों या रास्ते पड़ी कोरेक्स कफ़ सीरप या आयोडैक्स या इसी तरह की अन्य  खाली पड़ी शिशियो से लगा सकते हैं। इतना ही नहीं रूह को कंपकपा देनी वाली खबरों से अखबार भी सने पड़ है। बस सरकारों को नहीं दिखता है क्योंकि ड्रग्स तस्करों ने उसकी आंखों पर चश्मा लगा दिया है। बाकी राज्यों की सरकारों को तब दिखाई को इस चष्में का एहसास शायद तब होगा जब कोई एक और राज्य पंजाब बन जायेगा।
            सवाल ये नहीं है कि नशे से क्या स्थिति फैल गई? किस तरह का माहौल बेवजह बन गया बल्कि सबसे बड़ा सवाल ये कि एक राज्य में नशे का इतना बड़ा नेटवर्क कैसे फल जाता है? स्पष्ट है कि ऐसा बिना पुलिस-ड्रग्स माफिया की मिली भगत और सरकार में बैठे नेताओं की संलिप्तता के बिना सम्भव नहीं है। सबसे पहले ये ड्रग्स तस्कर युवाओं को टारगेट बनाकर उन्हें सस्ते या फ्री में ड्रग्स देते हैं और फिर उन्हें आदी बनाकर लूट लेते है। मार्केटिंग की प्राविधि ऐसे मामलों में एक ही होती है चाहे वो बाबाओं द्वारा अपनाई जाये या ड्रग्स तस्करों द्वारा। समय रहते अन्य सरकारें अगर आवश्यक कदम नहीं उठाती हैं तो ये नशा उन राज्यों के युवा और अन्य नागरिकों को अपनी चपेट में आसानी से ले लेगा। आवश्यकता इस बात की है अन्य राज्यों की सरकारों के लिए कि वो अभी से भर्ती होने वाले कार्मिकों, अधिकारियों एवं नेताओं का डोप टेस्ट अनिवार्य कर दे। यहां इस बात का ख्याल रखना सख्त जरूरी होगा कि ये डोप टेस्ट स्वतंत्र एवं मान्य प्रतिष्ठित संस्था से हो। ये सम्भव भी है क्योंकि डोप टेस्ट की सारी जिम्मेदारी अभ्यार्थी की ही रखी जा सकती है। इसका सीधा प्रभाव समाज पर पड़ेगा क्योंकि आज भी हमारा समाज सरकारी नौकरी को बहुत ही सम्मानजनक नजरिये से देखता है।
            अखबारों में छपी खबरों के अनुसार 33 दिनों में छियालीस जनों की मौत की ख़बर ही एक सामान्य आदमी को झकझोर देने वाली होती है ऐसे में उन परिवारों पर क्या बीतती है जिनके यहां नशे के कारण मौत हो जाती है। किसी का जवान बेटा, किसी का बाप किसी महिला की मेहन्दी के सूखने से पहले सुहाग का उजड़ जाना वाकई भयावह स्थिति होती है, रूह कांप जाती हैं। लेकिन बावजूद इसके पंजाब में आये दिन एकाध परिवार इस स्थिति का सामना कर रहा है। इसी की बदौलत वहां की सरकार हरकत में आई है और धुएं में उड़ते पंजाब को थामने की जद्दोजहद में लगी है। सरकार खुद इतनी खोखली हो चुकी है कि अब विकास और अन्य बातों से ज्यादा जरूरी पंजाब में नशे के इस दानव पर काबू पाना हो गया है। यहां एक बार फिर स्थिति ड्रग्स तस्करों की पहुच की उॅंचाई को दिखा रही है। इसीलिए ड्रग्स तस्करों एवं नशे के इस दानव के आगे सरकार बौनी और बेबस ही नज़र रही है। हालांकि सरकार लगातार इस स्थिति को खत्म करने के लिए उच्च स्तर पर प्रयासरत भी है। लेकिन बड़े स्तर पर किये गये प्रयासों के बावजूद भी पंजाब सरकार ड्रग्स तस्करों के नेटवर्क को भेदने में नाकाम ही रही है। अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक औसतन हर रोज दस करोड़ की ड्रग्स तस्करों से जब्त कर नष्ट करने की बात सामने आती है हालांकि यह कार्य कितना ईमानदारी से होता है कहना मुश्किल ही है। और दूसरी बात यहां यह भी सामने आती है कि इस भयावह स्थिति में ये तो केवल वो हिस्सा जो पकड़ में आया है, वो कितना होगा जो इसकी आड़ में बांटा जा चुका है? सरकारी दावा यह भी है कि पिछले तीन महिने में 18 हजार लोग गिरफ्तार किये जा चुके है। यहां भी स्थिति साफ़ नहीं है इसलिए शायद यह संख्या उन लोगों की ज्यादा है जो नशे के शिकार हैं कि नशे के कारोबारी।
            पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री सभी मौतों के लिए नशे के कारण नहीं मानते लेकिन स्थिति ये है कि मौतें नशा करने से भी हो रही है और नहीं करने से भी। ड्रग्स मिलने के कारण मिलने के कारण अलग-अलग ड्रग्स के संयुक्त मिश्रण से ये इच्छित ड्रग्स बनाने की कोशिष में मौत हो जाती क्योंकि जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रत्यक्षतः ड्रग्स से हुई मौत नहीं मानी जाती है। स्थिति बड़ी ही भयावह और डरावनी है अब पत्ता नहीं पंजाब के लौग कैसे बर्दास्त कर रहें है? ऐसी-ऐसी घटनाएं, विडियों और उनकी कहानी किस्से सामने आते हैं जिनका जिक्र करते हुए कलम भी रो पड़ती है। स्पष्ट है कि जितना भी सरकार द्वारा किया जा रहा है वो खानापूर्ति ही साबित हो रहा है। इसलिए जरूरत है कहीं ज्यादा प्रयासों की जो वाकई सख़्त हो और प्रभावी परिणाम देने वाले भी। नशे की समस्या को पंजाब की शान से जोड़कर केवल वोट के लिए काम लेने से काम नहीं चलेगा। स्पष्ट है कि सरकार ने पर्याप्त रूप से वो कार्य नहीं किया जिससे ड्रग्स और इसके नेटवर्क की कमर टूट जाएं। यह समस्या अभी हाल ही की पनपी हुई नहीं है। यह पिछली सरकार से विरासत में मिली थी और इस सरकार में भी उसी तरह बनी हुई है तो क्या मतलब निकाला जाएं? हालांकि कांग्रेस सरकार ने अपने सत्ता में आने के बाद नशे के नेटवर्क और समस्या को समाप्त करने का दावा किया था लेकिन अब पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह द्वारा ही गृहमंत्री राजनाथ सिंह को एनडीपीसी एक्ट में फांसी की सजा के प्रावधान की मांग कर अपने ही दावों को झुठला दिया है। कोई भी एक्ट या सजा तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जबतक अपराधी और आमजन इसको समझ सकें और समझ पैदा होती है शिक्षा से। लेकिन अफ़सोस देश में शिक्षा ही नहीं है ऐसे में कानून बनने या सुधरने से समस्या खत्म नहीं हो सकती। सरकार अब भी शिक्षा की आवश्यकता को समझे और अन्य प्रयासों के साथ-साथ शिक्षा को स्कूल में उपलब्ध कराए........इंक़लाब ज़िन्दाबाद।
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