Watch

Saturday 8 December 2018

गोकशी के नाम पर राजनीतिक प्रबन्ध

डाॅ. नीरज मील


           उत्तरप्रदेश पुलिस के एक बेहतरी निरीक्षक सुबोध कुमार सिंह भीड़ द्वारा मार दिया गया। भीड़ की न कोई शक्ल होती है न कोई पहचान ऐसे में किस पर आरोप लगाया जाए ये सवाल अपने आप में एक गुत्थी बन जाता है। गौरतलब है कि सुबोधकुमार सिंह ही वह इन्सपेक्टर थे जो ग्रेटर नोएड़ा के पास सहाड़ा गांव में अखलाक की मौत के बाद सबसे पहले पहुँचे थे व आरोपियों को गिरफ्तार करके लाये थे जिसके बाद उन्हें लाइन हाज़िर कर दिया गया। यहां बेहतरीन सवाल यह भी है कि क्या आरोपियों की धरपकड़ करना पुलिस का काम नहीं है? अगर है तो सोचने वाली बात ये है कि फिर सुबोधकुमार सिंह को लाइन हाज़िर क्यों किया गया? बुलन्दशहर की आसमां छूती इस बुलन्दी को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। खै़र, यहां मुद्दा सुबोधकुमार सिंह के लाइनहाजिर होने का नहीं है। सवाल कानून व्यवस्था के नाम पर चल रही सरकार की नाकामी और इस नाकामी से एक सदस्य गंवाने वाले के परिवार के प्रति उत्तर प्रदेश की सरकार की क्या सहानुभूति है? बुलन्दशहर की घटना की जांच मेरठ रेंज के आईजी से कराने का ऐलान भी किया गया है। इसी बीच सुबोध कुमार सिंह की मौत किन परिस्थितियों में हुई इस बारे में प्रदेश की पुलिस के पास भी कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं। हालांकि घटना के तुरन्त बाद एडीजी लाॅ एंड आॅर्डर आनन्द कुमार के अनुसार ‘‘सियाना थाने मेें सूचना मिली कि मउ गांव के खेतों में गौवंश के अवशेष पड़े हैं जिस सुबोधकुमार सिंह मौके पर पहुॅंचे थे और समझाया कि कार्रवाई में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं बरती जायेगी, लेकिन इसी बीच आसपास के गांवों से संकड़ों की तादाद जुटी भीड़ ने उनकी नहीं सुनी और गौवंश के टुकड़ों के साथ सियाना गढ़ रोड़ को अवरूद्ध कर दिया। पुलिस ने समझाइश की लेकिन भीड़ द्वारा चिकरावली पर पत्थरबाजी व आगजनी शुरू हो गयी। पुलिस को भी भीड़ को तीतर-भीतर करने के लिए फायरिंग करनी पड़ी लेकिन इस दौरान सुबोधकुमार सिंह घायल हो गए और उपचार के दौरान उनकी मौत हो गयी।’’ प्रथम दृष्टिया यही ज्ञात होता है कि यह एक ऐसी भीड़ थी जिसका शिकार एक कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार पुलिस अफसर हो गया और अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसी के साथ एक अन्य व्यक्ति जिसका नाम सुमित था वो भी इस हादसे का शिकार हो मारा गया। क्या भीड़ ही कानून होती है? 
         साफ है कि पुलिस निरीक्षक की हत्या दंगाइयों द्वारा गोली मार कर की गई है। बावजूद इसके पूरे प्रकरण में राजनीतिक रोटियां भी खूब सेकी जा रही हैं। पुलिस द्वारा अपने काबिल निरीक्षक को खोने के बावजूद इस घटना के पीछे मुख्य आरोपी व बजरंग दल के जिलाध्यक्ष योगेश कुमार राज को अब तक गिरफ्तार न कर पाना पुलिस की नाकामी कही जाएं या लाचारी विचारणीय है। इसी बीच आरोपी के बचाव में भारतीय जनता पार्टी के न केवल विधायक देवेन्द्रसिंह बल्कि सांसद भोलासिंह ने भी इसके लिए पुलिस को ही जिम्मेदार ठहरा डाला। सियासी खेल को और आगे बढ़ाते हुए योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजवर ने इसे विहीप, बजरंगदल और संघ द्वारा पूर्वनियोजित षड़यन्त्र बता दिया। यहां सबसे अहम सवाल खड़ा होता है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी के नेता बुलन्दशहर के गुण्डों को क्यों बचा रहे है? क्या बुलन्दशहर का यह कांड सोची-समझी साजिश है? आखिर इस तरह के कांड क्यों किये जाते है? भीड़ के पास समस्त प्रकार के हथियार व समान होना क्या इसके साजिश होने का पुख्ता सबूत नहीं है?
             अब तक के घटनाक्रम के अनुसार इस कांड से जुड़ी एफआइआर में सताइस लोगों के नाम हैं, 60 लोग अज्ञात हैं लेकिन गिरफ्तारी सिर्फ चार की हुई है अर्थात् सतासी लोगों में सिर्फ चार लोग गिरफ्तार हुए हैं और मुख्य आरोपी सहित बाकी सब पुलिस की पहुँच से बाहर हैं! अनेकों विडियों इस दौरान जारी हुए हैं। एनडी टीवी पर दिखाये गए नये विडियों के अनुसार सुमित कुमार नाम का जो दूसरा व्यक्ति मारा गया है वो भी पुलिस पर पत्थरबाजी करता नजर आया है। दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इस पत्थरबाज को भी दस लाख रूपये की आर्थिक सहायता देना, क्या हिंसा के लिए दंगाई को प्रोत्साहन राशि देने के समान नहीं है? आने वाले कुछ दिनों में योगी जी अगर योगेश राज और अन्य आरोपियों को भी इनाम बक्श दे तो ये हैरत वाली बात नहीं होनी चाहिए। 
              इन सब विडियों को गौर से देखने पर शायद वो समाज दिखे जिसमें देश को बर्बाद करने वाले नेता, कुछ संगठन और मीडिया की संदिग्ध भूमिका नजर आ जाए। आप शायद यह भी जान पाएं कि ये सब किस प्रकार इस कार्य हेतु लगे रहते हैं। हम भी भीड़ की हर हिंसा से सामान्य हो रहे है या आदी। इस भीड़ से मारा जाने वाला कोई अपना नहीं होता है इस लिए समझ नहीं पाते हैं। सच ही है भीड़ की कोई पहचान नहीं होती है। लेकिन सच तो यह कि इस भीड़ के शिकार हर धर्म के लोग होते है। गाय के नाम पर खान भी मारा गया और सुमित कुमार व सुबोधकुमार सिंह भी। आज तक के सभी विडियों देखें तो ज्ञात होता है कि इन विडियोे में नजर आती भीड़ में सिर्फ अठारह से बीस साल तक के लड़के नज़र आते हैं। जिन्हें हर तरह के भय से आजाद किया गया है क्योंकि ये भीड़ है। जब सरकार के पास युवा को कामदार बनाने की औकात नहीं होती है तब वो उसे धर्म के नाम पर उन्मादी बनाकर भीड़ की शक्ल दे दी जाती जाती है। जब कोई भीड़ से बिच्छुड़कर आरोपी बन जाता है और हत्यारा बन जाता है तो बड़े नेता भी इनसे दूरी बना लेते है।
             अब बात आती है घटना के घटित होने के बाद के पहलू पर। मुख्यमंत्री द्वारा जारी प्रथम प्रेस रिलीज में भी तीन बाते उभर कर सामने आ रही हैं। पहली, क्यों गौकशी को लेकर सरकार इतनी गम्भीर है? या सरकार सिर्फ गौकशी पर कार्रवाई के लिए ही बनी है! दूसरी, सरकार को बिना जांच के कैसे पता लगा कि घटना एक बड़े षड़यन्त्र का हिस्सा है? अगर सरकार की यह जानकारी इंटेलीजेंस के इनपुट के आधार पर है तो क्या ये इंटेलीजेंस इस घटना के घटित होने का इंतेजार कर रही थी? एवं तीसरा, क्या अभियान चलाकर माहौल खराब करने वाले तत्वों को गिरफ्तार करने की बात का कोई ठोस आधार सरकार के पास है या भीड़ के खिलाफ़ कार्रवाई की बात कर रहें है? पूरे प्रेस रिलीज में सुबोधकुमार सिंह की हत्या के सम्बन्ध में किसी प्रकार की चर्चा नहीं करना क्या यूपी सरकार की नज़र में एक काबिल व कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी की महत्ता को कम या नहीं आंकना नही है? एनडी टीवी में दिखाई गयी प्राइम स्टोरी से यह भी साफ होता है कि इस कांड के लिए दर्ज एफआईआर कितनी बोगस है, बकवास है जिसमें दो बच्चों के नाम हैं और ऐसे कई लोगों के नाम हैं जो उस क्षेत्र में रहते ही नही हैं। नया बास के दौ बच्चों के नाम क्यों है इस एफआईआर में? सवाल ये भी महत्वपूर्ण है कि गोवंश के अवशेष किसने गांव के खेतों में फैंके? आखिर पुलिस इस पूरे प्रकरण में किसी संगठन का नाम क्यों नहीं ले रही है? क्या पुलिस को इन संगठनों का खौफ़ है? मंगलवार को एडीजी लाॅ एंड आॅर्डर आनन्द कुमार क्यों कहा कि संगठन महत्वपूर्ण नहीं है? संगठन का नाम लेना कदापि उचित नहीं है, क्या ये दुनिया कि किसी पुलिस मैन्युअल में मिलेगा? ये शोध का विषय है! खैर, ऐसी भावना के लिए केवल कोई संघ जिम्मेदार नहीं है, असल मे ये सोच कुंठा से उतपन्न हुई है, इस कुंठा के कारकों को पर ईमानदारी से चर्चा करना बहुत जरूरी है! आप भी समीकरण से फुर्सत मिल जाये तो विमर्श कर लेना।  समीकरणबाजों तुम फिर चूक गए, समीकरण के फेर में, सुबोध सिंह की हत्या और मुआवजे को विवेक तिवारी  केस से कम्पेयर करना था!.पर अफ़सोस अब सब अखलाक को न्याय दिलवाने निकल पड़े।
          सुनने मे आ रहा है की बुलन्दशहर के ज्यादातर आरोपी दलित , पिछड़े ही है ! हिन्दुत्व के ठेकेदार तो वहां थे ही नही ! सारा समाजिक न्याय का कुनबा ही था ! अब योगेश राज दलित है ! और सुबोध सिँह सर्वण ! अब ऐसे मे अगर इन दोनो के पात्र बदल दिये जाये ! योगेश राज की जगह सुबोध सिँह होते और सुबोध सिँह की जगह योगेश राज होते तो अब तक शोषण की लम्बी लम्बी कहानीयां लिख चुकी होती ! वैसे सुनने ने यह भी आ रहा है की प्रयागराज मे होने वाली धर्म संसद मे दलित वर्ग के साधुओ को प्रमुखता दी जायेगीं ! वैसे यह भी हमे हिन्दूत्व के ठेकेदारो से ही पता चला है की साधु की जाति होती है क्योंकि वह अब तक यह कह रहे थे की साधु की कोई जाति नही होती है ? खैर, जातिय राजनैतिक महात्वाकांक्षा की पूर्ति भी जरूरी है चाहे दल और विचारधारा कोई सी भी हो ! अब सबसे बड़ी बात सोचने की यही है कि  उत्तरप्रदेश सहित सम्पूर्ण इंडिया में सुबोध सिंह की हत्या पर सामाजिक न्याय इतना खामोश क्यों है? क्या सुबोध सिंह समीकरण में फिट नहीं हो पा रहे......इसलिए! ये शहीदी नहीं बल्कि नृशंस हत्या है। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सब इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हर्ट हत्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता यह केवल एक पुलिसकर्मी की हत्या नहीं बल्कि कानून के सामने सिस्टम यानी कि तंत्र के फेल होने की पुख्ता खबर है बुलंदशहर की आसमान छूती बुलंदी को अब नजरअंदाज करना बेमानी ही होगा। आज हमे सोचना  होगा और तय करना होगा कि हम किस ओर  जाना चाहते हैं ?  क्योंकि सरकार बूचड़ खाने का लाइसेंस बांटेगी लेकिन जनता को भी भड़काएगी और गौमांस कहाँ से और कैसे आएगा ये तय नहीं करेगी। देश हमारा है तो फैसला भी हमारा ही होना चाहिए शरणार्थी सरकार का नहीं।
                                                                                                        इंक़लाब ज़िंदाबाद !
*Contents are subject to copyright                           



                                                                                                           Any Error? Report Us

No comments:

Post a Comment