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Monday 2 July 2018

कृषि लेखांकन: एक महत्ती आवश्यकता

 डॉ. नीरज मील 


कृषि लेखांकन वर्तमान समय की जरूरत है। अब जब कृषि को उद्योग के दर्ज़े की मांग प्रखर  हो रही है ऐसे में तो यह लेखांकन और भी आवश्यक हो गया है। कृषि लेखांकन लेखांकन के क्षेत्र के लिए एक उत्तम शोध क्षेत्र है। केवल नए शोधार्थियों को इस ओर अपना ध्यान आकृष्ट करना चाहिए बल्कि शोध मार्गदर्शकों को भी शोध में नये आयाम स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका इस क्षेत्र में शोध आयोजित करवानी चाहिए। विश्व के समस्त क्षेत्रों में कृषि की एक मुख्य क्षेत्र माना जाता है। अर्थव्यवस्था के कुल विकास में भी कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसीलिए विश्व के बहुत से देशों में कृषि आज भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। समय-समय पर हुए आकलन ये बताते हैं कि एक अर्थव्यवस्था में कृषि अनेकों प्रकार से मजबूती प्रदान करती है और मजबूती प्रदान करने का कार्य भी करती है। अर्थव्यवस्था के मुख्य चार स्तंभ है सेवा, उद्योग, कृषि असंगठित क्षेत्र।कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आश्रित होते हैं। अगर किसी वर्ष में कृषि कमजोर रहती है तो उसी वर्ष में अन्य क्षेत्र भी अपेक्षाकृत कमजोर ही रहते हैं। स्पष्ट है कि कृषि ही वह क्षेत्र है जो अन्य क्षेत्रों को मजबूती प्रदान करने की गारंटी देता है। अतः इस इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कृषि एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
कृषि अनेकों भिन्नताओं वाला उत्पादन का साधन हैं। कृषि को अनिश्चितताओं का खेल भी कहा जाता है। ऐसे में गहन अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि कृषि में भी वे सभी विशेषताएं पाई जाती हैं जो व्यवस्थाएं में निहित होती हैं।एक लम्बे समय से कृषि की की जा रही अनदेखी और  इन्हीं विशेषताओं के चलते हमें कृषि हेतु लेखांकन की अभिप्रेरणा प्राप्त होती है। आज के इस आलेख में इसी आवश्यकता की प्रबलता एवं फलीभूत होने की संभावनाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। विषय गंभीर है किंतु उच्च अध्ययन और उच्च आवश्यकता वाला है। यह अपनी प्रारंभिक अवस्था में है अतः सावधानी की अतिरिक्त आवश्यकता है। अतिरिक्त आवश्यकता इसलिए क्योंकि नीव मजबूत तो उस पर बनने  भवन भी सूंदर होने के साथ-साथ मजबूती वाला ही होगा। यहां यह जिक्र करना भी जरूरी है की अर्थव्यवस्था में कृषि को उच्च वरीयता दिलाने और सही फलित करने के लिए कृषि लेखांकन अनिवार्य हो गया है।
चूँकि हम बात कर रहे हैं एक नए आयाम की ऐसे में कृषि लेखांकन की आवश्यकता या महत्व का ज़िक्र होना जरुरी है। कृषि का अर्थव्यवस्था में विस्तृत योगदान होता है एवं आकलन की उचित व्यवस्था नहीं होती है। ऐसे में भारत जैसे देश में जहां कृषि ही अर्थव्यवस्था को दिशा और दशा प्रदान करने वाली है वहां कृषि लेखांकन की आवश्यकता आसानी से महसूस की जा सकती है। वर्तमान समय में इस आवश्यकता को रेखांकित करना तब और भी अधिक जरूरी हो जाता है जब इस क्षेत्र को विस्तृत शोध की आवश्यकता होती है। कृषि और कृषि के पिछड़े होने के पीछे कृषि लेखांकन का नदारद होना काफी हद तक जिम्मेदार है।
किसानों के लिए कृषि लेखांकन बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि किसान को स्वयं की आर्थिक स्थिति का ज्ञान करवाने के लिए कृषि लेखांकन एक महत्ती आवश्यकता है। किसी भी व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए कार्यों के प्रति सजगता और सरलता तभी प्राप्त हो सकती है जब उसके पास उसका उस कार्य का लेखा-जोखा हो। ऐसे में कृषि लेखांकन बेहद आवश्यक है। कृषि क्षेत्र की सूचना हेतु किसान को कृषि लेखांकन  बेहद जरुरी है। किसी भी क्षेत्र को सही और उचित रूप से मापने और जानने के लिए उससे प्राप्त सूचनाओं का आंकलन होना जरूरी होता है भले ही वह उसका उपयोग करे या करे। सूचनाएं महत्वपूर्ण होती हैं ऐसे में कृषि लेखांकन नहीं होने के कारण कृषि क्षेत्र की समस्त सूचनाएं बाहर नहीं पाती हैं और किसान इन निर्णयों को लेने में सक्षम नहीं हो पाता है। मौद्रिक दृष्टि से यह सूचनाएं और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती हैं ऐसे सूचनाओं को संधारित करने और प्रदर्शित करने के लिए लेखांकन की महती आवश्यकता है।  किसी भी कृषक को उसकी क्रिया की आर्थिक स्थिति की जानकारी तभी होती है जब उसके पास उस आर्थिक स्थिति को पता करने के लिए एक प्राविधि उपलब्ध हो। चूँकी किसान के पास कोई लेखांकन व्यवस्था नहीं होती है। लेखे रखने की कोई विधि प्रचलित नहीं है और ना ही इस संदर्भ में कोई शोध हो पाया है ऐसी स्थिति में किसान को आर्थिक स्थिति की जानकारी नहीं हो पाती परिणाम स्वरुप वह अनिर्णयन का शिकार हो जाता है। एक उत्पादक के लिए अपने स्रोतों की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है एवं कोष के उपयोगों नियन्त्रण भी। स्रोत एवं उपयोग का आकलन ऐसी स्थिति तभी हो सकता है जब एक लेखा रखने की उचित पद्धति उपलब्ध हो। लेकिन वर्तमान समय में किसानों के पास ऐसी कोई विधि उपलब्ध नहीं है जिसकी बदौलत वह अपने कोष के स्रोतों और उपयोगों का आकलन कर उचित निर्णय ले सके। इसलिए जरूरी है कि कृषि लेखांकन अपनाया जाए।अक्सर देखा जाता है कि किसान के लिए कृषि घाटे का सौदा साबित होती है। बावजूद इसके वह इसे पुरखों की परम्परा मानते हुए निभाने के लिए ढोता रहता है। लेकिन इस घाटे के पीछे एक बहुत बड़ा कारण होता है अनिर्णय की स्थिति। अनिर्णयन की स्थिति तब उत्पन्न हो जाती है जब इस क्षेत्र या किसी क्षेत्र विशेष हेतु आपके पास कोई उचित प्रदर्शन के लिए आंकड़े उपलब्ध ना हो या ऐसी कोई पद्धति उपलब्ध ना हो जो आंकड़े संधारित कर सके। ऐसे में किसान के लिए कृषि लेखन महती आवश्यकता है।
कृषि एक आर्थिक क्रिया भी है और ये उत्पादक अर्थात किसान के साथ-साथ सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण होती है। इसी के चलते सरकार के लिए कृषि लेखांकन उतना ही आवश्यक है जितना किसान के लिए। चूँकि सरकार भी कृषि का एक पक्षकार है कृषि से संबंधित समस्त प्रभाव से सरकार की छँवि भी प्रभावित होती है। सरकार के निर्णय में और सरकार के समुचित कार्यों में कृषि की सूचनाएं और कृषि का आकलन होना बेहद जरूरी होता है।इसलिए यह कृषि लेखांकन सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कृषि लेखांकन के अंतर्गत जो सरकारी महत्व के जो बिंदु हैं उन्हें भी देखा जाना अनिवार्य हैं। कृषि क्षेत्र के उचित आकलन हेतु आज जब सरकारें सूचना के लिए ज्यादा जवाबदेही होती जा रही है ऐसे में कृषि क्षेत्र की समुचित सूचनाओं के आकलन हेतु एक उचित प्रबंध किए प्रणाली या लेखांकन प्रणाली का होना बेहद आवश्यक है इस दृष्टि से यह कह सकते हैं कि कृषि लेखांकन सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण है। अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान कितना है इसका आंकलन करने के लिए वर्तमान समय में प्रत्यक्ष रूप से कोई नहीं विधि नहीं है।  देश की सरकार को अर्थव्यवस्था में अर्थव्यवस्था के सभी घटकों का योगदान देखना जरूरी होता है ताकि वह इन्हीं योगदानों के आधार पर कोई ठोस कदम उठा सकें। अगर कोई क्षेत्र कमजोर है तो उस कमजोरी को दूर करने के लिए और अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने के लिए यह जरूरी होता है कि उससे संबंधित सारी सूचनाएं उपलब्ध हो। अन्य क्षेत्रों की तुलना में कृषि क्षेत्र की सूचनाएं अपर्याप्त एवं भ्रामक होती है। ऐसे में कृषि लेखांकन की आवश्यकता महसूस की जा सकती है। जब एक सर्वमान्य एवं वैज्ञानिक विधि के आधार पर निकाले गए आंकड़े होते हैं तो ऐसी स्थिति में अलग-अलग क्षेत्रों का अलग-अलग योगदान तुलनात्मक रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। ऐसी स्थिति में जब की कृषि क्षेत्र के लिए कोई लेखांकन उपलब्ध नहीं है लेखांकन की आवश्यकता का महसूस होना लाजमी है।  सरकार द्वारा निवेशकों को आमंत्रित करने हेतु मजबूत और महत्वपूर्ण आधारों की जरूरत होती है। निवेश हेतु महत्वपूर्ण और ऋण योजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु विभिन्न कृषि लेखांकन आवश्यक होता है।
आमजन के हित को देखा जाए तो कृषि क्षेत्र की समस्त जानकारियां आम जन तक पहुंचाने के लिए भी कृषि लेखांकन महत्वपूर्ण है। आज जागरूकता और ज्ञान में अभिवृद्धि एक अधिकार के रूप नागरिकों की पहचान बन चुकी है। ऐसे में आमजन भी यह जानना चाहता है कि उसका अनाज स्वास्थ्यवर्धक और उचित मूल्य वाला है या नहीं? इस लिहाज़ से कृषि लेखांकन अब आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी बनता जा रहा है। आज छात्रों और शोधार्थियों के लिए नयी संभावनाओं और ऊंचाइयों के साथ चुनौतीपूर्ण वाले क्षेत्र की दरकिनार है। कृषि भी अध्य्यन की इस वर्तमान जरूरत को पूरा कर सकता है बशर्ते इससे प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों की प्राप्ति सम्भव हो सके।  इसके अतिरिक्त अन्य अध्ययन में भी सहायक होता है क्योंकि जो छात्र और छात्राएं कृषि क्षेत्र में अध्ययन कर रहे हैं उनको प्राथमिक और द्वितीयक आंकड़ों का जो जानकारी होती है आवश्यकता होती है उसमें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कृषि लेखांकन। सुविधाओं के विस्तार हेतु अगर कोई आमजन अपनी सुविधाओं का विस्तार करता है अगर उसे यह पता हो कि उसे कितनी मूल्य में कितनी क्या चीजें मिलेंगी तो वह अपनी सुविधाओं का विस्तार आसानी से कर सकता है। ठीक इसी तरह आमजन में से कोई भी छात्र को कैरियर के रूप में चुना चाहे तो उसके लिए उसके पास मजबूत आकलन होना जरूरी होता है और ऐसे आकलन की प्रदाता एक लेखांकन द्वारा ही संभव हो सकती है।
स्पष्ट है कि देश को नयी दिशा देने और कृषि व कृषक की बदतर हो चुकी दशा को सुधारने के लिए कृषि लेखांकन महत्वपूर्ण आवश्यकता ही नहीं एक अनिवार्यता भी बन चुकी है। अगर कृषि को बचाना है, देश की अर्थव्यवस्था में आने वाली त्रासदी को रोकना है तो हमें निश्चित ही कृषि लेखांकन पर अपना ध्यान देना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो वाणिज्य संकाय की लेखाशास्त्र शाखा न केवल अपना अस्तित्व खो देगी बल्कि अपनी स्वतंत्रता को भी खो देगी…………………………………….. इंक़लाब ज़िंदाबाद।

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