डॉ. नीरज मील
सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां जादू-टोने, अन्धविश्वास व
कुरीतियों में विश्वास नहीं किया जाता हो। न ही ऐसा स्थान नहीं है कि जहां इन सब
के चलते ठगी न होती हो। ऐसी स्थिति में भारत कैसे इन सब से अच्छूता रहा सकता है
लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि जादू-टोने, अन्धविश्वास व कुरीतियों आदि का समर्थन
कर लिया जाए या फिर इन्हें अपना ही लिया जाए। न तो जादू-टोने, अन्धविश्वासों व
कुरीतियों में विश्वास किया जा सकता है और न ही इन्हें उचित या सही ठहराया जा सकता
है। आज भारत में हर रोज एक न एक बाबा की पोल खुल रही है। तथाकथित संत आसाराम,
गुरमीत राम रहीम, नारायण साईं, आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के वीरेंद्र देव दीक्षित
नित्यानंद, राजस्थान से कौशलेन्द्र फलाहारी महाराज आदि वो नाम हैं जिन पर बलात्कार
के आरोप व केस दर्ज हो चुके हैं। इसी कड़ी में हाल ही में शानिनाथ मंदिर के
संस्थापक महामंडलेश्वर दाती महाराज जिनका वास्तविक नाम मदनलाल है पर भी उनके
शिष्यों सहित बलात्कार का आरोप लग आध्यात्म और धर्म की दुनिया में सनसनी फैला दी
है। इन महाशय पर आरोप दिल्ली के कालका इलाके में रहने वाली 25 वर्षीय महिला ने
लगाया है।
इन
लोगों के बाबा बनने का एक अनूठा ही घटना कर्म होता है जिसके तहत ये बाबा बनते हैं।
वैसे उपर्युक्त सभी बाबाओं का बाबा बनने का एक जैसा ही कार्यक्रम रहता है बस
प्रक्रिया अलग-अलग होती है। इसी के चलते जुलाई 1950 में जन्में दाती महाराज मात्र
7 वर्ष की आयु में संत बन गए। इसके कुछ समय बाद ये महाशय देश के कुछ मुख्य चैनलों
के माध्यम से लोगों का भविष्य बताते हैं। बहुत सारी ऐसी बाते सोशल मिडिया पर भी
प्रसारित की जाती हैं। दक्षिण दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित इनके आश्रम पर देश की
कई नामी-गिरामी हस्तियाँ पहुचकर आशीर्वाद लेने से भी नहीं चुकती हैं। इसके बाद
महाराज द्वारा पाली जिले के आलामास गाँव स्थित आश्वासन गुरुकुल आश्रम को इन दाती
महाराज द्वारा गोद लिया जाता है। इस आश्रम में 800 से अधिक बच्चियां रहती हैं जो
ज्यादातर अनाथ ही हैं।
इन
बाबाओं के आश्रम में शुरू में कुछ सेवक होते हैं जो इन बाबाओं के साथ बराबर के
साझेदार होते हैं। ये साझेदार जनता के बीच जाकर उन्हें बाबा के गुणों से अवगत
करवाते हैं और फिर भोले-भाले लोगो को अपनी गिरफ्त में लेते हैं। फिर धीरे-धीरे
लोगों का जुड़ना शुरू हो जाता है इसी बीच बाबा आये हुए लोगों को चमत्कार दिखाते हैं
और उनसे व्यक्तिगत मिलते भी हैं। इसके अतिरिक्त ये जनता के बीच सामाजिक सरोकार
दिखाने के लिए सामाजिक कार्य भी करते हैं। आसाराम ने भी राजस्थान के आदिवासी बाहुल
क्षेत्र में खूब लोगो को शराब से मुक्ति दिलाई एवं निशुल्क इलाज व शिक्षा के कार्य
के कारण उस क्षेत्र में ये लोकप्रियता हासिल की थी। यहीं से शुरू होती है ब्रेन
वॉश की प्रक्रिया। जैसे-जैसे ब्रेन वॉश होता है वैसे-वैसे व्यक्ति बाबा का अनुयायी
बनने लग जाता है। और फिर एक निश्चित संख्या में ये अनुयायी हो जाते हैं तब ये बाबा
एंड कम्पनी अपना विस्तार करने के लिए हाईटेक संसाधनों का इस्तेमाल करना शुरू कर
देते हैं। एक मोटे आंकलन के अनुसार ये फंडा फ़ैल नहीं हो सकता। इसीलिए हर एक हाईटेक
बाबा द्वारा यही फंडा अपनाया जाता है। वैसे इन बाबाओं को आध्यात्मिक या धार्मिक
ज्ञान का 1 फीसदी ज्ञान भी नहीं होता है लेकिन खुद को भगवान जरुर घोषित कर चुके
होते हैं। ठीक ऐसी ही कहानी हाल ही में चर्चा में आये शानिनाथ मंदिर के संस्थापक
महामंडलेश्वर दाती महाराज की है।
ब्रेन वॉश इस तरीके से होता है कि महिलाएं दासी और पुरुष दास बन जाते हैं और
फिर शुरू होता है वो खेल जिसे शायद ही किसी पवित्र ग्रन्थ में उचित माना जाता हो। इन्हीं
दासियों में से एक पुरानी दासी के कथन नयी दासी के लिए कुछ इस तरह के होते जो दाती
महाराज पर दुष्कर्म का केस लगाने वाली बयां करती है कि उसे एक पुराणी सेविका
द्वारा कहा जाता है “तुम बाबा की हो और बाबा तुम्हारे हैं। तुम कोई नया काम नहीं
करने जा रही हो, बाबा का आशीर्वाद पाने के लिए हम सब करती आई हैं। कल हमारी बारी
थी आज तुम्हारी बारी है और इसके बाद भी कइयों के साथ ऐसा ही होगा। बाबा सागर हैं
और हम मछलियां हैं। इसे ऋण समझ कर चुकाओ। ऐसा करने से तुम्हे मोक्ष मिलेगा। यह भी
सेवा है।” इस प्रकार दासी के इस कथन से अनगिनत सवाल खड़े होते हैं और अनगिनत ही
पहेलियां। सेविकाओं की इस तरह की स्वीकरोति जहां एक बड़े दलदल की और इशारा कर रहीं
है तो दूसरी ओर एक गंभीर लेकिन जानलेवा संक्रमण की अपार संभावनाएं भी सुनिश्चित कर
रही हैं जिसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं जा पाता है। स्पष्ट है बाबाओं के इस
समुद्र में किस पर यकीं करें और किस पर संदेह कुछ भी तय कर पाना खतरे से खाली नहीं
है।
माना कि
आरोप कोई भी लगा सकता है इससे कोई व्यक्ति अपराधी नहीं सिद्ध होता। लेकिन दाती
महाराज का आरोप लगते ही आश्रम से गायब हो जाना इस आरोप को मजबूती प्रदान करता है।
खैर, हकीकत क्या है और फ़साना क्या वो तो जांच और पुलिस की कारवाई में सामने आ ही
जायेगा। आसाराम, राम रहीम इत्यादि केसों की शुरुआत में हालात ऐसे ही थे। लेकिन बाद
में जो परत-दर-परत खुलती गयी स्थिति और भी ज्यादा प्रकट होने लग गयी। खैर,
साधू-संतों के भेष में इस प्रकार चंद लोगों का उजागर होना निश्चय ही ईमानदार संतों
के चरित्र को भी बेवजह शक के दायरे में ला रहा है। ऐसे में संतों और बाबाओं की
प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता अघात लगाना स्वभाविक है। सत्य जो भी है वो तो निकट
भविष्य में परख में परख लिया जाएगा और दूध का दूध और पानी का पानी कर देगा। यहाँ
एक बात अवश्य ही समय रहते जनता और संत-महात्माओं को अवश्य सोच लेना चाहिए कि आखिर
कैसे आध्यात्मिकता को वासना के लिए इस्तेमाल होने से रोका जाए। वर्तमान परिपेक्ष
में साधू कम और बलात्कारी ज्यादा सिद्ध हो रहे हैं।
जैसा कि
सर्वविदित है कि ऐसे बाबाओं को बढ़ावा देश के तथाकथित संस्कृति प्रेमियों और बड़े
लोगों द्वारा ही ज्यादा दिया जाता है। इन बाबाओं का एक तुका लगने पर ये बड़े लोग
इन्हें मालामाल कर देते हैं। ऐसे में जनता को दोष देना कहाँ तक उचित है? क्या सरकार
की कोई जिम्मेंदारी नहीं बनती? क्या अल्प समय में एक के बाद एक होकर कई मामले
उजागर हो जाने के बावजूद भी सरकार उदासीन क्यों हैं? साफ़ है इन बाबाओं को जनता में
पूजाने के लिए नेता लोगों का भी अहम योगदान होता है। कुछ दिन पहले मेरी इस बात को
साबित करने वाला विडियो सोशल मिडिया पर काफी चर्चित रहा जिसमें देश के बड़े-से बड़े
नेता आसाराम के धोक लगा रहे थे। जिनमे कुछ इस देश के राज्यों के मुख्यमंत्री और
प्रधानमंत्री तक बन चुके हैं। आज इस संदर्भ में स्थिति बड़ी ही भयावह हो चुकी है
जहां सच की अपनी-अपनी परिभाषा बना ली गई है। लेकिन आध्यात्म और धर्म का खोखलापन तब
नंगा हो जाता है जब एक संत दुष्कर्म का दोषी करार दे दिया जाता है या आध्यात्म के
गुरु द्वारा आत्महत्या कर ली जाती है।
ऐसी स्थिति में
आस्था एक सबसे भयंकर, असामाजिक और विनाशकारी विषयवस्तु उभर कर सामने आ रही है। ऐसे
में स्पष्ट है कि आस्तिक होने के बजाय नास्तिक होना कहीं ज्यादा बेहतर, सुरक्षित
और लाभकारी है। ऐसे समय में बुद्धिजीवियों को अपने कर्तव्य की अनुपालना के लिए जनता
में उस जागरूकता का संचार करना ही चाहिए जिसकी वर्तमान में महती आवश्यकता है। यथार्थवादियों
को आगे आना चाहिए और न केवल जादू-टोने, अन्धविश्वास व कुरीतियों में विश्वास रखने
वालों का मजाक बनाना चाहिए बल्कि इनका मज़ाक भी उडाना चाहिए। धर्म और धर्मान्धता के
नुकसान का सार्वजनिकीकरण करना चाहिए। हमें हमारी मूल संस्कृति को पहचानना ही होगा
और नैतिकता पर बल देना ही होगा तभी हम अपने अस्तित्व को बचा पायेंगे .....इंक़लाब
जिंदाबाद।
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